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________________ षष्ठम चर्चा : प्रवचनसार में शुभ-अशुभ-शुद्धोपयोग धम्मेण परिणदप्पा, अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो। पावदि णिव्वाणसुहं, सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं / / इसप्रकार (भगवान कुन्दकुन्द आचार्य ने इसी ग्रन्थ की 11वीं गाथा में) स्वयं ही निरूपण किया है। इसलिए शुभोपयोग का धर्म के साथ एकार्थसमवाय है; अतः शुभोपयोगी भी, उनके धर्म का सद्भाव होने से श्रमण हैं, किन्तु वे शुद्धोपयोगियों के साथ/ समान कोटि के नहीं हैं, क्योंकि शुद्धोपयोगी समस्त कषायों को निरस्त करने से निरास्रव ही हैं और ये शुभोपयोगी तो कषाय-कण नष्ट नहीं करने से सास्रव ही हैं और ऐसा होने से ही शुद्धोपयागियों के साथ इनको नहीं लिया जाता, मात्र पीछे से अर्थात् गौणरूप से लिया जाता है। (तत्त्वप्रदीपिका) .... तथा शुद्धोपयोगिनां मुख्यत्वं, शुभोपयोगिनां तु चकार-समुच्चयव्याख्यानेन गौणत्वम् / कस्माद् गौणत्वं जातमिति चेत् / ..... तेष्वपि मध्ये शुद्धोपयोगयुक्ता अनास्रवाः, शेषाः सासवा इति यतः कारणात्; तद्यथा - निजशुद्धात्मभावनाबलेन समस्तऽशुभाशुभसंकल्पविकल्परहितत्वाच्छुद्धोपयोगिनो निराम्रवा एव, शेषाः शुभोपयोगिनो मिथ्यात्व-विषय-कषायरूपाऽशुभास्रवनिरोधेऽपि पुण्यास्रवसहिता इति भावः। (तात्पर्यवृत्ति) ___अर्थात् जैसे, निश्चय से शुद्ध-बुद्ध-एकस्वभावी सिद्ध-जीव ही जीव कहे जाते हैं और व्यवहार से चतुर्गति-परिणत अशुद्ध-जीव, जीव हैं; उसी प्रकार शुद्धोपयोगियों की मुख्यता तथा चकार द्वारा समुच्चयव्याख्यान होने से शुभोपयोगियों की गौणता है। __ गौणता कैसे उत्पन्न हुई? ऐसा यदि प्रश्न हो तो कहते हैं - उनमें भी शुद्धोपयोग-युक्त अनास्रव है, शेष सास्रव हैं; इस कारण उनकी गौणता है। वह इस प्रकार है - अपने शुद्धात्मा के बल से, सम्पूर्ण शुभ-अशुभ सम्बन्धी संकल्प-विकल्प रहित होने के कारण शुद्धोपयोगी निरास्रव ही हैं। शेष शुभोपयोगी मिथ्यात्व, विषय-कषायरूप अशुभास्रव का निरोध होने पर भी पुण्यासव सहित हैं - ऐसा भावार्थ है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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