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________________ ( 6 ) वैराग्याभ्यां शक्ये व्यपकष्टुम् / यहाँ दो उद्देश्यों में से 'निद्रा' स्त्रीलिङ्ग है (और 'भय' नपुंसक लिंग है। इनका एक विधेय ‘साधारण' नपु० द्विवचन में रखा गया। इन्हीं दो उद्देश्यों के लिये एक सर्वनाम एतद् भी नपु० द्विवचन में प्रयुक्त हुआ। अभ्यास-६ ( अजहल्लिङ्ग विधेय) १--गुरुजी कहते हैं दूसरे कि निन्दा मत करो, निन्दा पाप है। २-राम अपनी श्रेणी का रत्न है और अपने कुल का भूषण है। ३-वे सब मङ्गल पदार्थों के निवास स्थान ( निकेतन )ौर जगत् की प्रतिष्ठा हैं / ४–पाण्डव छोटी अवस्था में ही कौरवों की शङ्का का स्थान बन गये। ५–वह राजा की कृपा का पात्र( पात्र, भाजन )हो गया और लोगों के सत्कार का भी / 6-* अविवेक आपदाओं का सबसे बड़ा कारण ( परम् पदम् ) है, अतः अच्छे बुरे में विवेक करके कार्य करे / 7-* माधव कष्ट में (हमारा) रक्षक ( पद ) है, ऐसा हमारा दृढ़ निश्चय है / 8 *---गुणियों के गुरण ही पूजा का स्थान हैं, न लिंग और नहीं वय / ६-अच्छा राजा प्रजात्रों के अनुराग का पात्र (प्रास्पद, भाजन ) हो जाता है, और राष्ट्र को सुख का धाम बना देता है / १०-जो शासक पिता की तरह प्रजामों का रक्षरण, पोषण तथा शिक्षण करता है और उनसे कर के रूप में जो लेता है उसे कई गुणा करके उन्हीं को दे देता है वह पादर्श गासक है / ११-सांख्य के अनुसार प्रकृति ( प्रधान ) जगत् का आदि कारण ( निदान ) हैं, पुरुष असंग, साक्षी और निगुण हैं। १२-विद्वानों का कथन है कि * मृत्यु शरीरधारी जीवों का स्वभाव ( प्रकृति ) है और जीवन विकार है / 13-* इन्द्र ने असुरों को तेरा लक्ष्य (शरव्य, लक्ष्य) बना दिया है, यह धनुष उनकी ओर खींचिये / 14-* सत्पुरुषों के लिये सन्देह के स्थलों में अपने अन्तःकरण की प्रवृत्तियां प्रमाण होती हैं। १५-इक्ष्वाकु-कुल में गुणों से प्रसिद्ध ककुत्स्थ नाम का राजा सब राजाओं में श्रेष्ठ (ककुद नपुं० ) हुआ। संकेत-इस अभ्यास में ऐसे विधेय पद दिये गये हैं जो अपने लिंग को नहीं छोड़ते, चाहे उद्देश्यों का लिंग उनसे भिन्न हो। ऐसे शब्दों को 'अजह
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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