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________________ ( 32 ) नहीं किया जा सकता', 'रत्नों की प्रभा से नष्ट नहीं किया जा सकता', 'शीतल उपचारों से दूर नहीं किया जा सकता', 'रात के अन्त में जिसमें जागना नहीं होता', 'जड़ी बूटी और मन्त्रों से जिसकी चिकित्सा नहीं हो सकती', 'उससे न बनाया हुआ' इत्यादि वाक्यों के स्थान में संस्कृत समास रचना क्रम से इस प्रकार होगी–प्रबलिपीडिताः, अस्नेहजेयम्, प्रभानुभेद्यम्, अरलालोकोच्छेद्यम् (तमः), अशिशिरोपचारहार्यम्, अक्षपावसानप्रबोधा (निद्रा), अमूलमन्त्रगम्यः (दर्पज्वरः), अतत्प्रणीतम् / पहले नाइसमास करके 'बल्यपीडिताः, स्नेहाजेयम्, भान्वभेद्यम्' इत्यादि नहीं कह सकते / ___ संस्कृतानुसार परिवर्तन कई बार हमें हिन्दी के वाक्यों को पहले संस्कृत सांचे में ढालना होता है, और पीछे उनका संस्कृत में अनुवाद करना होता है / जैसे-'उसे ज्वर पा गया'-इस वाक्य को हिन्दी में 'ज्वर उसे पकड़ लिया , ऐसा परिवर्तन कर इसकी इस प्रकार संस्कृत बनाएँगे-'तं ज्वरो जग्राह / ' यहां कुछ एक साधारण, पर रोचक हिन्दी के वाक्य संगृहीत किये जाते हैं। उनके साथ ही उनके यथेष्ट परिवर्तित हिन्दी स्वरूप, तथा उनके संस्कृत अनुवाद भी दिये जाते हैं / उसे कह दो ठहरे, उसका भाई अभी आता हैं (उसे कह दो तुम ठहरो, तुम्हारा भाई...)तं ब्रहि, तिष्ठ, अभित आयाति ते भ्रातेति / आप का यहां कितने दिन ठहरने का विचार है (आप यहां कितने दिन तक ठहरना चाहते हैं) = कियतो वासरानिह स्थातुमिच्छसि। वह उनके सींगों की सुन्दरता से आश्चर्यपूर्ण हो गया (उनके सींगों की सुन्दरता को देखकर वह विस्मय को प्राप्त हुआ) तस्य शृंगाणां शोभामालोक्य स विस्मयं जगाम / वह मुझे सज्जन दिखाई दिया (मुझे वह सज्जन है, ऐसा मालूम हुआ)= स सज्जन इति मां प्रत्यभात् / सौभाग्य से उसके मन में एक निपुण उपाय पैदा हुआ (उसने एक निपुण उपाय सोचा)=स दैवात् पटुमेकमुपायमुपालब्ध / विद्वान् निर्धन होता हुआ भी सब जगह आदर की दृष्टि से देखा जाता है (-पूजा जाता है) विद्वान् दुर्गतोऽपि सन् सर्वत्रोपचर्यते / जो अाज धनी हैं सम्भव है वे कल धनवान् न रहें (=निर्धन हो जाएँ)-येऽद्य * इसमें हेतु यह हैं कि 'नन्' का समास पर्युदास अर्थ में होता है, प्रसज्यप्रतिषेध में नहीं / पर्युदास के द्रव्य प्रधान होने से कर्ता व करण अर्थ में ततीयान्त पदों का नसमास के साथ कोई अन्वय नहीं बनता।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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