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________________ ( 26 ) 'प्रत्येकं विनियुक्तात्मा कथं न ज्ञास्यसि प्रभो' (कुमार० 2 // 31 // ) / यहाँ 'ज्ञास्यसि' का अर्थ 'जानासि' है / यदि विप्रस्य भगिनी व्यक्तमन्या भविष्यति' (स्वप्न 6 / 14 // ) / यहाँ ‘भविष्यति' 'भवति' अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। हिंदी में ऐसा कहने की शैली है। वक्ता का वर्तमान काल के विषय में भी लट् का प्रयोग होता है-'तदयमपि हि त्वष्टुः कुन्दे भविष्यति चन्द्रमाः' (अनर्घराघव रा१०॥) (तो यह चांद भी विश्वकर्मा की खराद पर रहा होगा)। 'न भविष्यति हन्त साधनं किमिवान्यत्प्रहरिष्यतो विधेः' (रघु० 8 / 44) / विध्यादि अर्थों के होने पर धातुमात्र से लिङ् होता है, धातुवाच्य क्रिया का काल चाहे कोई हो / हाँ लिङ् का विषय केवल भविष्यत् होता है, जब दो वाक्य खण्ड हेतुहेतुमद्भावविशिष्ट हों (अर्थात् जिनमें क्रियाएँ सोपाधिक हों)। विधि-आदि अर्थों के अतिरिक्त क्रिया करने में कर्ता की योग्यता, शक्तता (साम र्थ्य) पूर्णसंभावना आदि अर्थों में भी धातु मात्र से तीनों कालों में लिङ्लकार होता है। अतः प्रायः लिङ् किसी भी काल विशेष का बोधक नहीं / प्रकरण के अनुसार किसी एक काल का परिचायक भी होता जाता है / इस प्रकार विधि लिङ अथवा लिङ् कभी-कभी वर्तमान काल का द्योतक है / जैसे—'कुर्यां हरस्यापि पिनाकपाणेधैर्यच्युति के मम धन्विनोऽन्ये' (कुमार०)। यहाँ 'कुर्याम्' कर्तुं शक्नुयाम् / कभी-कभी यह भूत काल को दर्शाता है। जैसे-'अपि नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात्' (शकुन्तला नाटक)। यहाँ लिङ् संभावना के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और कार्य (जन्म) का काल भूत है / इस पर टीकाकार राघवभट्ट कहते हैं-भूतप्राणताऽत्र लिङ इति / 'मैं आशा करता हूँ कि वह इस समय तक घर पहुँच गया होगा।' इस वाक्य के अनुवाद करने में हम लिङ् का प्रयोग कर सकते हैं, एवं हम कह सकते हैं-प्राशासे कालेनानेन स गृहं गतः स्यात् / इच्छार्थक धातुओं से वर्तमान काल में लिङ्काल का प्रयोग हो सकता है (और लट् का भी)-यो नेच्छेद् भोक्तुं न स बलाद् भोजनीयः / यहाँ हिन्दी वाग्व्यवहार के साथ सम्पूर्ण संवाद है। जो न खाना चाहे जो नहीं खाना चाहता / 'यह स्पष्ट है कि तुम काले और श्वेत वर्गों में भेद नहीं कर सकते, अन्यथा तुमने जली हुई रोटी न खाई होती'-इस वाक्य में हम लुङ् का प्रयोग नहीं कर सकते।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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