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________________ ( 21 ) प्रत्येक वाक्य में एक क्रिया होती है ( एकतिङ् वाक्यम् ), परन्तु संस्कृत में क्रिया को छोड़ देना केवल सम्भव ही नहीं, प्रत्युत वाग्व्यवहार के अनुकूल भी है / जहाँ क्रिया प्रति प्रसिद्ध हो वहां उसका प्रयोग न भी किया जाए तो कोई दोष नहीं। प्रविश पिण्डीम् / यहाँ भुङ्क्षव अति प्रसिद्ध होने से छोड़ दिया गया है। हम कहते हैं- इति शङ्करभगवत्पादाः (शङ्कराचार्य यह कहते हैं ) / अथवा-'इति शङ्करभगवत्पादा पाहुः पश्यन्ति मन्यन्ते वा' / पहला प्रकार बढ़िया है। इसी प्रकार हम 'शब्दं नित्यं संगिरन्ते वैयाकरणाः' के साथ 2 'नित्यः शब्द इति वैयाकरणाः' ऐसा भी कहते हैं / यह दूसरा प्रकार चारुतर है। यदि वाक्य क्रिया के बिना ही पढ़ने में अच्छा मालूम होता हो तो अस् (होना) के लट्लकार को छोड़ देना ही अच्छा है। उदाहरणार्थअहो ! मधुरमासां दर्शनम्, अपशवो वा अन्ये गोप्रश्वभ्यः पशवो गोश्वाः, कस्त्वम, कोऽसौ, का प्रवृत्तिः इत्यादि / क्तान्त, क्तवत्वन्त, तथा कृत्यप्रत्ययान्त के बाद अस् के वर्तमान कालिक प्रयोग को प्रायः छोड़ देने की रीति है / यह तो स्पष्ट ही है कि क्रिया के बिना कोई वाक्य नहीं हो सकता। मया गमनीयम् (अस्ति)। मया ग्रामो गमनीयोऽस्ति / मया ग्रामटिका गमनीया (अस्ति)। गतोऽस्तमर्कः। उपशान्त उपद्रवः / गतास्ते दिवसाः यहाँ भी 'अस्ति' या 'सन्ति' गम्यमान है। संस्कृत के छात्रों की यह प्रायः प्रवृत्ति है कि प्रधान तिङन्त क्रिया के स्थान पर कृदन्त प्रयोग करते हैं। इसका कारण क्रियाओं के प्रयोगों की कुछ क्लिष्टता है। निःसन्देह कृदन्त प्रयोग आसान होते हैं, परन्तु ये तिङन्त क्रिया के स्थानापन्न नहीं हो सकते। ‘स ग्रामं गतः' (गतवान वा ) जिसका समानार्थक सम्पूर्ण वाक्य 'स ग्रामं गतोऽस्ति' ( गतवानस्ति ) है का अर्थ 'वह ग्राम को गया हुवा है, या ग्राम को जा चुका है'-ऐसा है / एवं 'वह ग्राम को गया' इस वाक्य का यह विशुद्ध संस्कृत अनुवाद नहीं कहा जा सकता। इस वाक्य के अनुवाद करने के लिये हमें तिङन्त क्रिया पद का प्रयोग करना चाहिए :'स ग्राममगच्छत्' / कृदन्तों का अपना पृथक् क्षेत्र है। 'वह सोया हुआ है', 'मैं भूखा हूँ', 'तुम थके हुए हो', इन वाक्यों के अनुवाद करने में कृदन्तों के प्रयोग करना ही पड़ता है। एवं हमें 'स सुप्तः', 'अहं क्षुधितः', 'त्वं श्रान्तः', ऐसा कहना चाहिए। किन्तु 'वह सो रहा है', 'मुझे भूख सता रही है', और
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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