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________________ है कि हम 'इतः षड्भिर्मासैः पूर्व भूरकम्पत' अर्थात् आज से छः महीने पूर्व पृथ्वी कांप उठी (अक्षरार्थ-पृथ्वी कांपी, ऐसे कि कम्पन क्रिया छः महीनों को पूर्वता से विशिष्ट हुई) यहाँ 'पूर्वम्' क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है। यह रचना अभी शिष्ट व्यवहार से समर्थनापेक्ष है। यद्यपि इसकी शुद्धता में हमें पूर्ण विश्वास है, फिर भी हम छात्रों को इस प्रकार की रचना के प्रयोग की अनुमति नहीं देते, क्योंकि हमें सस्कृत साहित्य में अभी तक ऐसा प्रयोग नहीं मिला। ___ 'से' के अर्थ को संस्कृत भाषान्तर में किस तरह से कहा जा सकता है इसके विषय में कुछ संकेत हम पहले दे चुके है / 'चार दिन से मेह बरस रहा है'-इस साधारण सरल हिन्दी वाक्य की संस्कृत बनाने में संस्कृत के मान्य गण्य विद्वान् उपर्युक्त शुद्ध शिष्ट-सम्मत प्रकारों में से प्रथम प्रकार का प्राश्रय लेते हैं। वे 'अद्य चत्वारो वासरा वर्षतो देवस्य'-इस प्रकार भाषान्तर बनाते हैं / इस भाषान्तर में काल की प्रधानता हैं और क्रिया की गौणता / इसके विपरीत मूल वाक्य में क्रिया की प्रधानता है और काल की अपेक्षाकृत गौणता। इस गुण-प्रधान-भाव को हम पहले पपंच पूर्वक दिखा चुके हैं / सो दिये हुए हिन्दी वाक्य का यह निर्दोष संस्कृतानुवाद नहीं कहा जा सकता। क्रिया की प्रधानता रखते हुए अर्थात् समान वाक्य में क्रिया को कृदन्त से न कह कर तिङन्त से कहते हुए 'से' के अर्थ को किस विभक्ति से कहना चाहिए। आजकल विद्वानों के लेखों में इस विषय में विभक्तिसांकर्य पाया जाता है। कोई तृतीया का प्रयोग करते हैं तो कोई पंचमी का। हमारे मत में ये दोनों विभक्तियां यहाँ सर्वथा अनुपपन्न हैं। न यहाँ अपवर्ग है और न अपादान (विश्लेष में अवधि भाव)। 'यतश्चाध्वकालनिर्माणम्' इस वार्तिक का भी विषय नहीं है / क्योंकि वहां भी काल मापने की अवधि में ही पंचमी का विधान है / चार दिन अवधि नहीं, किन्तु वर्षण-क्रिया से व्याप्त हुआ काल है / यदि सोमवार से मेह बरस रहा है अथवा बरसा ऐसा कहें तो सोमवार वर्षण क्रिया की अवधि अवश्य है। इससे हम माप सकते हैं कि कितने दिनों तक या कितने दिनों से वर्षा हुई या हो रही है। चार दिन से इत्यादि वाक्यों की संस्कृत बनाते हुये हमें काल में द्वितीया प्रयुक्त करनी चाहिये और यह द्वितीया 'अत्यन्तसंयोग' में होगी। कुछ एक विद्वानों का यह कहना कि अत्यन्तसंयोग के समान होने पर भी जहां तक' अर्थ है वहां द्वितीया शिष्ट और इष्ट है
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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