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________________ ( 197 ) होंगे / लौटकर देखते हैं तो न गंठरी और न बाबू साहिब। हमारे शेर ने' जो सुनहरा अवसर देखा तो गंठरी२ बगल में दबाई और चल निकला। किसका माल और कैसे राम / यह जा वह जा दो ही मिनटों में नजर से गुम / अब लाला दो थप्पड़ पीटते हैं। अच्छी हुई जो सबेरे ही साठ रुपये की रकम पर पानी फिर गया / अांख झपकी माल गुम वाली बात हुई। न मालूम किस मनहूस का मुंह देखा था। इससे पूछ, उससे पूछ, पर कुछ पता नहीं चला / कमबख्त 3 गंठरी समेत न मालूम किधर निकल गया। बहुतेरी दौड़-धूप की, इधर-उधर प्रादमी दौड़ाये, पोलिस में रिपोर्ट दी, परन्तु चोर का पता न मिलना था और न मिला। अन्त में विवश हो सिर पीट कर बैठ गये। ___संकेत-किस का माल और कैसे राम कस्य स्वम् (कस्य स्वेऽधिकारः) को वा परमेश्वरः / यह जा वह जा, दो ही मिनटों में नजर से गुम =इतो दृश्यमानस्ततो वा दृश्यमान एव कलाद्वयेन चक्षुर्विषयमतिक्रान्तः / अच्छी हुई जो सबेरे ही अहह मयि दुर्वृत्तं विधेः / अहर्मुख एव षष्ठे रूप्यकाणां प्रहाणिरजनि / आंख की झपकी, माल गुम वाली बात हुई=इदं तद् यदुच्यते निमिषिते च विलोचने प्रनष्टश्चार्थः / अभ्यास.-४५ बापू की महानिर्वाण-यात्रा उस दिन यमुना-तट पर महानिर्वाणयात्रा दृश्य भी एक अनूठा५ दृश्य था। कौन उसे मरण-यात्रा व श्मशान-यात्रा कहेगा? यात्रियों की प्रांखों से आंसू उमड़ रहे थे, भक्तों के गले भरे हुए थे, प्रेम रस बरस रहा था और मानव-रूप में देवगण फूलों की वर्षा कर रहे थे। उस बेचारे नादान हत्यारे की ओर कहां किस का ध्यान जाता था? प्रेम के महासागर में द्वेष की उस “नगण्य बूंद का कहीं पता भी नहीं चलता था / लगता है कि उस सन्ध्या को प्रार्थना भूमि पर जीवन सखा मृत्यु को आलिङ्गन देने के लिये स्वयं बापू ने ही वह सब लीला रची होगी। न 1-1. अस्मद्वाचां विषयभूतः / 2-2. पोटलिंका कक्षे कृत्वा / 3. हताशः / 4-4. रक्षिवर्गाय न्यवेदयत् / 5. अपूर्व, अभूतपूर्व-वि०। 6. व्यपदेक्ष्यति / 7. अज्ञ, अनात्मज्ञ-वि० / 8. सुतुच्छक, कुत्सित, उपेक्ष्य-वि० /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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