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________________ सीखी है और मैंने इसका प्रदर्शन भी किया है / १३-मुझे आशा है कि प्राप इस बालक को इसकी बुद्धिमत्ता के लिये जानते होंगे / १४-तुम धन के स्वामी हो, और हम भी सब अर्थों को कहनेवाली वाणी के स्वामी हैं / १५वे महात्मा जो भारत की स्वतन्त्रता के लिये लड़े, हमारी कृतज्ञता के भागी हैं। १६-अचम्भा होगा यदि वह इस पहेली को समझ जाय / संकेत-न मेऽनेन स्तेयेन कश्चिदभिसम्बन्धः / द्विषद्भिमिथ्याऽभिशस्तोऽस्मि / 4- नात्र मिथो विवदेमहि, नैतेन कमपि निर्णयमधिगमिष्यामः / ६-ह्योऽहं सुहृदं भोजनेन न्यमन्त्रये / इस वाक्य में 'भोजनेन' में तृतीया हेतु अर्थ में है। तृतीया से ही इस बात को कहने की शैली है / यहां चतुर्थी व्यवहारानुगत नहीं होगी। -अमण्डितभद्रेण वेषेण तमहं छात्रं पश्यामि कमण्डलुना च / १०-ये पराभ्युदये सेाः (मत्सरिणः) ते मूढाः / न तेषां सुखसंवित्तिरस्ति / १६आश्चर्य यद्यसौ प्रहेलिकामिमां बुध्येत / 'यदि' उपपद होने पर 'शेषे लुडयदी' (3 / 3 / 151) से लुट् का प्रतिषेध हो जाने पर 'यदायद्योरुपसंख्यानम्' को साथ लेकर 'जातुयदोलिङ (3 // 3 // 147) से लिङ् हुआ। यहां अनवक्तृप्ति से पाश्चर्य की प्रतीति होती है / अभ्यास-३ १-जो तुम कहते हो मुझे उस पर विश्वास नहीं। मुझे तुमने पहले भी कई बार ठगा है। २-यहां से कण्व ऋषि का प्राश्रम कितनी दूर है ? यह इस स्थान से चार अथवा साढ़े चार कोस है। ३-खेद मत करो, हम आ ही पहुँचे हैं / ४-प्रांख को सिकोड़ कर पढ़ते हो, यह हानिकारक है / ५संक्षेप बुद्धि का लक्षण है और वाचालता प्रोछेपन का चिह्न है। ६-ईश्वर की सृष्टि कितनी विशाल (विशङ्कट) है ? इसके परिमाण को कौन जान सकता है ? ७-मैं तुम्हारी कार्य- तत्परता की स्तुति करता हूँ और सरलता की भी / तुम चिर तक जीयो और उत्तरोत्तर बढ़ो। ८-उन महाकवियों को नमस्कार हो, जिन्होंने हमारे साहित्य कोश को अपनी अमर कृतियों से भर दिया। मैंने बहुत देर के पीछे पहचाना कि जिसके साथ मैं बातें कर रहा था, वह मेरा पुराना गुरुभाई था / १०–मैं तुम्हें वैदिक साहित्य का धुरन्धर विद्वान् समझता हूँ। यह केवल स्तुति नहीं, परन्तु यथार्थ कथन है / ११-मैं तुम्हारी तनिक भी परवाह नहीं करता, तुम योंही बड़े बनते हो। १२-यहां दलदल है / पांव 1. यहां तृतीया का प्रयोग होना चाहिये। 2. लट् वा लट् का प्रयोग निर्दोष होगा / 3-3. पक्षिनिकोचम् / 4. कार्यतात्पर्यम् /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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