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________________ ( 124 ) गये और दबे पांव निकल गये। 6-* हमें कृपण की कुटिलता से बचानो। 10-- वेद अल्पज्ञ से डरता है कि कहीं यह मुझे चोट न पहुँचाये / ११-कुछ लोगों ने व्यवसाय बना रखा है कि वे अपने मित्रों से रुपया ऐंठते हैं। १२गंगा हिमालय से निकलती है (प्र-भ ) और बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है / 13-* हे मूढ़ ! मृत्यु से क्यों डरता है. वह डरे हुए को छोड़ तो नहीं देगी? वह आज अथवा सौ बरस में कभी तो आएगी ही। १५-अपने बच्चे को तो दुर्जन के संग से बचाओ, कहीं वह व्यसनों में न फंस जाय / ___ संकेत-१-निपुणः स सादी, तथापि तुरङ्गादपतत् / क्षणं हि प्रमत्तोऽभूत् / ४-विघ्नः प्रतिहतास्ते विरमन्ति व्यापारात् / ११-केषांचिज् जनानाम् एष एव व्यवसायो यत्ते स्वमित्राणि धनाद् वंचयन्ते / ठगने अर्थ में वंच् (चुरादि ) आत्मनेपदी ही है। जो चीज ठगी जाती है उसमें पंचमी आती है। यहाँ 'अपादान' अर्थ में ही पंचमी है। 'शक्ता वंचयितुं प्राज्ञं ब्राह्मणं छगलादिव'तन्त्राख्यायिका / 'मुष' चुराना, लूटना के प्रयोग में जो पदार्थ लूटा या चुराया जाता है, उसमें द्वितीया, जिससे लूटा या चुराया जाता है, उसमें पंचमी और द्वितीया भी। हाँ जहां किसी पदार्थ को वंचना क्रिया का कर्ता मान लिया जाय वहाँ अनुक्त कर्ता में तृतीया भी निर्दोष होगी-न वंच्यते वेतसवृत्तिरथैःतन्त्राख्यायिका। १५-परिहर सुतमसतः सङ्गात्, मा स्म प्रसाक्षीद व्यसनेषु / (परि-ह) यहाँ परे रखने अर्थ में है / यही इसका मूलार्थ है / प्रभ्यास-१२ (षष्ठी कारक-विभक्ति) 1-* पाणिनि के सूत्रों की कृति प्रतीव विचित्र है। २-गीता का दैनिक पाठ अध्यात्म उन्नति के लिए अत्यधिक हितकर है। 3-* मनुष्य अपने भाग्य का आप विधाता होता है, यह कहाँ तक सच है हम सब खूब जानते हैं। 4--* चाही हुई वस्तुओं के उपभोग से चाह कभी मिटती नहीं, बढ़ती ही जाती है, जैसे हवि से अग्नि / ५-दूसरे को गुणों को जानने 1. तिरोभवन्, तिरोधीयन्त, अन्तरदधत (अन्तर्दधिरे)। 2-2. बंगखातमभ्येति (प्रविशति)। 3. मृत्यु शब्द पुं० और स्त्री० है। यहाँ उत्तर वाक्य में तद् सर्वनाम का पुंल्लिग रूप 'सः' अथवा स्त्री० 'सा' प्रयोग किया जा सकता है।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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