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________________ ( 77 ) उदाहरणार्थ-१---वधूपक्ष्या लाजैरवकिरेयुर्वधूम् (लारभिवृषेयुर्वधूम्) / २-युक्तं नाम साधारणे नः साध्ये संगच्छेमहीति पृथम् नो यत्ना वितथाः स्युः / ८-गुरुश्चेदामच्छेत्, प्राशंसे युक्तोऽधीयीय / यहाँ "प्रागमिष्यति" पौर "मध्येष्ये" का प्रयोग व्याकरणानुसार पशुख होगा।६-भवानिदानों गुणेरात्मसदृशीं षोडशहायनी | हृयां कन्यामुद्हेत् / १०–स न मन्येतायमेव परः पुमर्थ इति / ११--प्रप्यस्मत्सैन्या भूयसोपि परान् परास्येयुः / यहाँ विधिलिङ् पूर्ण संभावना पर्थ में प्रयुक्त हुमा है / इसके स्थान में लोट्लकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता। १२-पाश्चयं यबन्धो लिखेत्, पठेच्च / यहाँ 'यदि' का प्रयोग न करें, तो लट का प्रयोग करना होगा। पाश्चर्यमन्धो नाम लेसिष्यति, पठिष्यति च / १५-त्वया स्वपुत्रा उच्चे: शिक्षयाऽलंकरणीया मासन्, सिदि जात्वाप्नुयुस्ते / १६-तेन स्वं गृहं नाऽधीकरणीयमासीद, कदाचित् कभित् बान्धवस्तस्य साहाय्यं कुर्यात् / 14 वें तथा 15 - वाक्यों के अनुवाद में लिङ के स्थान में 'कृत्य' प्रत्यय का भी प्रयोग किया गया है। ऐसा भी व्याकरणसम्मत है। कृत्यप्रत्ययान्त के साथ मस् वा भू का भूतकाल का प्रयोग कुछ भी असंगत नहीं, क्योंकि कृत्य प्रत्यय पोर लिङ तीनों कालों में एक समान प्रयुक्त होते हैं। किसी कालविशेष में नहीं। अभ्यास-२५ (लिम्) 1-* मैं महादेव के धर्य को गिरा सकता हूँ ? दूसरे धनुर्षारियों का तो कहना ही क्या ? २-तुम्हें यह मेरे लिये करना होगा', नहीं तो मैं तुम्हारी खबर लूंगा। ३ब्रह्मचारियों के लिये मांस और शहद (मधु) वजित हैं। इसी लिये श्वेतकेतु ने अश्वियों को कहा था-ब्रह्मचारी होता हुमा मैं कैसे शहद खाऊँ / 4-- जो व्यवहार अपने प्रतिकूल हो, उसे दूसरों के प्रति नहीं करना चाहिये। 5-* मनुष्य प्रत्येक पर विजय चाहे, परन्तु अपने पुत्र से हार चाहे / ६-यदि तुम कृष्ण को नमस्कार करोगे तो स्वर्ग को जानोगे / ७-यदि तुम नित्य मृदु व्यायाम करोगे भौर खाने पीने में नियम करोगे तो निश्रय ही थोड़े समय में हृष्ट पुष्ट हो जानोगे। 8--* इस पृथ्वी पर सब + यहाँ 'षोडशहायनाम्' नहीं कह सकते / 'दामहायनान्ताच'( 441 / 27) से क्योविषय में डीप होता है। 1-1 स्वयेदं मत्कारणादवश्यकरणीयम् / 'कृत्य' प्रत्यय से इस प्रकार कह सकते हैं / २-वर्जयेयुः /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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