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________________ नित्य नियम पूजा [85 काय छहों प्रतिपाल, पंचेन्द्री मन वश करो / संयमरतन संभाल, विषयचोर बहु फिरत हैं // 6 उत्तम संयम गहु मन मेरे, भव भवके भाजै अघ तेरे / सुरग नरकपशुगतिमें नाही, आलस-हरन करणसुख ठाहीं॥ ठाही पृथ्वी जल आग मारुन. रूख त्रस करूना धरो। सपरसन रसना घ्रान नैना, कान मन सब वश करो जिस बिना नहिं जिनराज सीझे तू रूल्यो जग कीच में / इक धरी मत विसरो करो नित, आव जममुख बीचमें।६ ॐ ह्रीं उत्तमसंयमधर्मागाय अयं निपामीति स्वाहा / तप चाहें सुर राय, करमशिखरको वज्र है। द्वादशविधि सुखदाय, क्यों न करे निज शक्तिसम / उत्तम तप सब मांहि बखाना, कर्मशैल को वज्र समाना। वस्यो अनादि निगोद मंझारा, भूविकलत्रय पशुतन धारा / धारा मनुष तन महादुर्लभ, सुकुल आयु निरोगता / श्री जैनवाणी तत्त्वज्ञानी, भई विषयपयोगता / / अति महादुर्लभ त्याग विषय, कषाय जो तप आदरे / नरभव अनूपम कनक घरपर, मणिमयी कलशा धरे 7 // ॐ ह्रीं उत्तमतपोधर्मागाय अर्घ्य निर्मपामीति स्वाहा / दान चार परकार, चार संघको दीजिये / धन बिजली उनहार, नरभव लाहो लीजिये / / उत्तम त्याग कह्यो जग सारा, औषध शास्त्र अभय आहारा / निह चै रागद्वेष निरवारै, ज्ञाता दोनो दान संभारै / /
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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