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________________ [47 नित्य नियम पूजा श्री देव-शास्त्र गुरु विदेह क्षेत्रस्थ श्री विद्यमान बीस तीर्थकर तथा श्री अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्ठोकी दोहा-देव-शास्त्र गुरु नमन करि, बीसतीर्थकर ध्याय / सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूचित हुलसाय / / ॐ ह्रीं श्री देव शास्त्र-गुरुसमूह ! श्री विद्यमान विशति तीर्थंकर समूह ! श्री अनन्तानंत ! सिद्धपरमेष्ठी समूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव भषट् सन्निधिकरणं / अष्टकं अनादिकालसे जगमें स्वामी जलसे शुचिताको माना / शुद्ध निजातम सम्यक, रत्नत्रय निधिको नहीं पहिचाना / / अब निर्मल रत्नत्रय जल ले, देवशास्त्र गुरुको ध्याऊं। भव आताप मिटावनकी, निजमें हो क्षमता समता है। अनजाने अबतक मैंने, परमें की झठी ममता है।। चन्दन सम शीतलता पाने श्री देवशास्त्र गरुको ध्याऊं / विद्यमान श्री बोस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभुके गुग गाऊं।चंदनं।२ अक्षय पदके बिना फिरा जगकी लख चौरासी योनीमें / अष्ट कर्मके नाश करनको, अक्षत तुम ढिग लाया मैं / अक्षय निधि निजकी पाने अब देव-शास्त्र गुरुको ध्याऊं। विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभुके गुण गाऊं अक्षतं / 3
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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