SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नित्य नियम पूजा [41 दोहा-विविध भांति परिमल सुमन, भ्रमर जास आधीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन // 4 // ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व. स्वाहा। अति सबल मद कंदर्प जाको, क्षुधा उरग अमान है। दुस्सह भयानक तासु नाशनको, सु गरुड़ समान है। उत्तम छहों रस युक्त नित, नैवेधकरि घृत में पचू / अरिहन्त श्रत सिद्धांत गुरु निग्रंथ नित पूजा रचू / / दोहा-नाना विधि संयुक्तरस, व्यज्जन सरस नवीन / जासों पूजों परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन / 5 / / ॐ ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो क्षधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा। जे त्रिजग उद्यम नाश किने, मोहतिमिर महावली / तिहि कर्मघाती ज्ञानदीप, प्रकाश ज्योति प्रभावली // इह भांति दीप प्रजाल, कंचनके सभाजनमें खचू / अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू॥ दोहा-स्वपर प्रकाशक ज्योति अति दीपक तमकरि हीन / जासों पूजों परमपद देव शास्त्र गुरु तीन / 6 // ह्रीं देव-शास्त्र गुरुभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्ग. स्वाहा जो कर्म-इंधन दहन अग्नि, समूह सम उद्धत लसे / वर धूप तासु सुगंध ताकरि, सकल परिमलता हंसे / / इह भांति धूप चढाय नित, भवज्वलन माहीं नहिं पचू। अरिहन्त श्रुत सिद्धांत गुरु निम्रन्थ नित पूजा रचू॥
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy