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________________ नित्य नियम पूजा भयो तब कोप कहै कित जीव, जले तब नाग दिखाय सजीव लख्यो यह कारण भावन भाय,नये दिव ब्रह्मऋषिसुर आय / / तष ही सुर चार प्रकार नियोग,धरी शिविका निजकंध मनोग कियो वन मांहि निवास जिनंद, धरे व्रत चारित आनंदकंद !! गहे तहं अष्टमके उपवास गये धनदत्त तने जु अवास / दयो पयदान महा-सुखकार, भई पनवृष्टि तहां तिर्हिवार 12 गये तब काननमांहि दयाल, धरयो तुम योग सबहिं अघटाल तब वह धूम सुकेतु अयान, भयो कमठाचरको सुर आन।१३ करै नभगौन लखे तुम धीर जु पूरव बैर विचार गहीर / कियो उपसर्ग भयानक घोर, चली बहुतिक्षण पवन झकोर 14 रह्यो दशहूँ दिशिमें तम छाय, लगी बहुअग्नि लखी नहिं जाय मुरुडनके बिन मुड खिलाय, पड़ें जल मसलधार अथाय 15 तबै पद्मावती कंथ धनिंद, चले जुग आय जहां जिनचन्द / भग्यो तब रंकसु देखत हाल, लह्यो तब केवल ज्ञान विशाल दियो उपदेश महा हितकार, सभव्यन बोधि समेद पधार। सुवर्णभद्र जहं कूट प्रसिद्ध वरी शिव नारि लही बमुरिद्ध / 17 जजू तुम चरन दुहूँ कर जोर, प्रभू लखिये अब ही मम ओर कहें 'बखतावर रत्न' बनाय, जिनेश हमें भवपार लगाय 18 // पत्ता // अव पारस देवं, सुरकृत सेवं नंदत चर्न सनागपति / करुणाके धारी, परउपकारी, शिवसुखकारी कर्महती // 19 ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय पूर्णाघ्यं नि० स्वाहा /
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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