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________________ नित्य. नियम प्रजा / 103 ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बंध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो धूपं नि० // 7 // बादाम छुहारे, श्रीफल धारे, पिस्ता प्यारे, दाख वरं। इन आदि अनोखे लखि निरदोखे थालपजोखे, भेट धरं विसु. ॐ ह्रीं त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतैकाशोति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्यो फलं नि० // 8 // जल चंदन तंदुल कुसम रु नेवज, दीप धूप फल, थाल रचौं। जयघोष कराऊ बीनबजाऊं अर्घ चढाऊं,खूब नचौं विसु० / ॐ ह्रीं नौलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि षट्पंचाशल्लक्ष सप्तनवतिसहस्त्रचतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयेभ्योः अयं नि० // 9 // अथ प्रत्येक अर्घ / चौपाई / अधोलोक जिनआगमसाख, सात कोडि अरु बहतर लाख / श्रीजिनभवन महा छवि देइ, ते सब पूजौं वसुविधि लेई / ॐ ह्रीं अधोलोकसम्बन्धि सप्तकोटि -द्विसप्तति-लक्षाकृत्रिम श्री जिनचैत्यालयेभ्यो अगं निर्व स्वाहा / मध्यलोक जिन मन्दर ठाठ, साढेचार शतक अरु आठ / ते सब पूजौं अर्घ चढाय, मन वच तन त्रयजोग मिलाय / / ॐ ह्रीं मध्यलोकसम्बन्धि चतुशताष्टपंचाशत श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा // 2 // अडिल्ल-ऊर्ध्वलोक के मांहि भवन जिन जानिये, लाख चौरासी सहस सत्याणव मानिये / तापै धरि तेईस जजों शिरनायक कंचन थाल मझार जलादिक लायकै // 3 // ॐ ह्रीं ऊर्ध्वलोकसम्बन्धि चतुरशीति लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्रत्रयोविंशति श्रीजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घ्य निर्व• स्वाहा / 3 /
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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