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________________ नित्य नियम पूजा बन्धादिक सत्रह सब चूरे ठारह जन्म न मरण मनं / एक समय उनईस परीषह, बीस प्ररुपनिमें निपुनं / / भाव उदीक इकीसौ जान, बाइस अभखन त्याग करं। अहिमिंदर तेईसौं वन्दै, इन्द्र सुरग चौबीस वरं // 5 // पच्चीसों भावन नित भानै छब्बीस अंग अपंग पढे / सत्ताइसो विषय विनाशै, अट्ठाईसों गुण सु पढे / शीत समय सर चौहटवासी, ग्रीषमगिरिसिर जोग धर। वर्षा वृक्षतरै थिर ठाढ, आठ करम हनि सिद्ध वरं / 6 / दोहा-कहो कहां लों भेद में, बुध थोडी गुण भूर / 'हेमराज' सेवक हृदय, भक्ति करो भरपूर !! ॐ ह्रीं आचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुभ्यो अर्घ्य नि० स्वाहा / अकृत्रिम चैत्यालय पूजा चौपाई आठकरोड अरु छप्पनलाख, सहस सत्याणव चतुशतभाख / जोड इक्यासी जिनवर थान, तीनलोंक आह्वानकरान 16 ह्रीं त्रैलोक्यसम्बन्ध्यष्टकोटि-षटपंचाशल्लक्ष-सप्तनवतिसहस्त्र चतुःशतकाशीति अकृत्रिमजिनचैत्यालयानि अत्र अवतर 2 संवीषट् / अत्र तिष्ठ 2 ठः ठः / अत्र मम संनिहितानी भव 2 वषट् / छन्द त्रिभंगी / क्षीरोंदधिनीरं, उज्ज्वल सीरं, छान सुचिर', भरि झारि / अति मधुर लखावन, परमसुपावन तृषोबुझावन, गुगभारी।। वसुकोटि स छप्पनलाख सताणा, सहस चारशत इक्याशी / जिनगेह अकीर्तिम तिहुँ जगभीतर पूजत पद ले अविनाशी।।
SR No.032857
Book TitleNitya Niyam Puja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Pustakalay
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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