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________________ 60 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास ब्राह्मण जैन धर्म में ब्राह्मणों के लिए हिन्दू धर्म की भांति छः वृत्तियाँ बतलायी हैं यद्यपि ये भिन्नता लिये हुए हैं - इज्या, (अर्हत पूजा) वार्ता (व्यापार) दयादत्ति अनुग्रहयोग्य (पात्रदात्ति) महातपस्वी मुनियों को आहार देना (समदत्ति) श्रद्धापूर्वक सुवर्ण आदि का दान (अन्वयदत्ति शास्त्रों की भावना एंव उपवास करना) ये कर्म ब्राह्मणों के लिए अत्यावश्यक थे। स्मृतियों में ब्राह्मणों को इन छ: कर्मो के अतिरिक्त कृषिकर्म की अनुमति दी गयी है१६० / दान में प्राप्त भूमि का उपयोग कृषि कर्म द्वारा ही करते थे। __ जैन ब्राह्मणों के दस अधिकार बतलाये गये है१६१ / हिन्दू परम्परा की भांति जैन परम्परा में दुष्कर्म एंव अन्याय करने वाला ब्राह्मण अवध्य नहीं क्योंकि जैन धर्म आचार पर अत्यधिक बल देता है। ब्राह्मण जैन राजाओं के पुरोहित होते थे।६२ | चारित्रिक भ्रष्टता से युक्त ब्राह्मण दुराचरणों द्वारा जीवनयापन करते थे।६३ | चरित्र से शुद्ध ब्राह्मणों की जैनसमाज में स्थिति अच्छी थी१६४ | सभी जीवों में समभाव रखना उनकी श्रेष्ठता थी। क्षत्रिय तीर्थकर ऋषभ ने कर्मभूमि की स्थापना करके हाथों में शस्त्र लेकर दुर्बलों की रक्षा करना सिखलाया था। क्षत्रियों का मुख्य अधिकार शस्त्र धारण कर प्रजा की रक्षा करना था५ : जैन परम्परा में तीर्थकरों के क्षत्रिय वंश में होने की जानकारी होती है।६६ | श्रमण परम्परा में क्षत्रिय वर्ण को ब्राह्मण वर्ण से श्रेष्ठ बतलाया गया है।६५ | दैश्य पुराणों में खेती, पशुपालन, वाणिज्य एंव शिल्प द्वारा जीविकोपार्जन करने का विधान किया गया है। ब्राह्मणों द्वारा भी वैश्यों के व्यापार कार्य को प्रमुख पेशा मानने के उल्लेख प्राप्त होते हैं१६६ | शुद्र ब्राह्मण क्षत्रिय एंव वैश्य इन तीन वर्णो की सेवा सुश्रूषा आदि इनकी जीविका के साधन थे। इन्हें स्पृश्य एंव अस्पृश्य दो भागों में विभाजित किया गया है१७० / आदिपुराण में प्राप्त उल्लेखों में शूद्रों को धार्मिक क्षेत्र में तीन वर्णो की भांति सुविधा न मिलने की जानकारी होती है१७१ / इन जातियों के अतिरिक्त इस काल में अनेक जातियों का उल्लेख प्राप्त होता है जिसका कारण समाज में अनुलोम एंव प्रतिलोम विवाहों का प्रचलन था७२ / इसी कारण ऋषभ ने अपने ही वर्ण से सम्बन्धित व्यवसाय को करने एंव उल्लंधन
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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