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________________ 46 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास का प्राचीनतम उपलब्ध प्रयोग विमलसूरि के पउमचरिउ से प्राप्त होता है इसकी रचनातिथि महावीर सम्बत् 530 (अर्थात सन् ई०वी०३) दी है | शिलालेखों में महावीर सम्वत् का प्राचीनतम ज्ञात प्रयोग महावीर निर्वाण सं० 84 (ईसापूर्प 443) के बड़ली अभिलेखों में प्राप्त होता है। जिससे महावीर निर्वाण सम्वत् 527 ई० पू० के 470 वर्ष बाद विक्रम सम्वत् एवं 605 वर्ष बाद शक सम्वत प्रचलित हुआ जो क्रमशः 57 ई० पू० (विक्रमसम्वत) एवं 78 ई० (शकसम्वत) निश्चित होता है। 112 इन दोनों के मध्य 135 वर्ष का अन्तराल है। जैन लेखों में शक सम्वत् एवं विक्रम सम्वत् का साथ-साथ उल्लेख किया गया है। गुर्जर प्रतिहार नरेश भोजदेव के देवगढ़ स्थित 862 ई० के जैन सतम्भलेख में उक्त मानस्तम्भ की प्रतिष्ठा का समय वि० सं० 616 एवं शक सम्वत् 784 साथ साथ दिया है / 13 आठवीं शती ई० पू० में स्वामी वीरसेन ने अपनी धवलाटीका विक्रम सम्वत् 838 (780 ई०) में समाप्त की और उनका उल्लेख जिनसेन–सूरि पुन्नाट ने अपने हरिवंशपुराण में किया है जिसकी समाप्ति का काल स्वयं उन्होंने शक सं० 705 (ई० 783) दिया है / 114 जैन साहित्य में प्राप्त कालनिर्देश कालक्रमानुसार इतिहास निर्माण में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जनसाधारण की भाषा ___ जनसाधारण को अपने धर्म के आचारों विचारों एवं सिद्धांतों से अवगत करना उनकी अपनी विशेषता है। अपने उपदेशों को सरल एवं सहजगम्य बनाने के लिए जैनाचार्यों ने न केवल संस्कृत में ही रचना की बल्कि प्राकृत अपभ्रंश आदि भाषाओं में भी की। प्राकृत उनके धर्मग्रन्थों की भाषा थी, सामान्य वर्ग तक पहुंचने के लिए उन्होंने अर्द्धमागधी एंव अप्रभंश एंव राजकीय, व सम्भ्रान्तवर्ग तक पहुँचने के लिए उन्होंने संस्कृत को अपनाया। साहित्य निर्माण के क्षेत्र में उनका ध्यान लोकरुचि की ओर था इसी कारण समयानुकूल प्राकृत संस्कृत, अपभ्रंश, कन्नड़, गुजराती राजस्थानी एंव मराठी भाषाओं में रचनाएं की। जैनाचार्य जनसाधारण की भाषा में उपदेश करते थे। जैन साहित्य से तीर्थकरों द्वारा समवसशरण में जनसाधारण की भाषा में उपदेश देने की जानकारी होती है। जैन भिक्षु एंव आचार्य जहाँ जहाँ भी गये वहाँ वहाँ की भाषाओं को चाहे वे आर्य परिवार को हों चाहे द्रबिड़ परिवार के हों सभी को अपने उपदेश का माध्यम बनाया। इसी उदार प्रवृत्ति के कारण मध्ययुगीन जनपदीय भाषाओं के मूल रुप अभी तक सुरक्षित है। धार्मिक उपाख्यानों के माध्यम से घटनाओं का वर्णन __जैन इतिहास लेखकों ने घटनाओं को धार्मिक उपाख्यानों के माध्यम से प्रकट किया है। स्वधर्म को व्यापक एंव स्थायी रुप देना उनका मुख्य उद्देश्य था।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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