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________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य के जीर्णोद्वार कराने एंव नन्दिसंध के अ. .. . .. . .... .. .. .. . . . . . . . . . . रा होती है। आचार्य महासेन ने भरत चक्रवर्ती के सेनापति एंव हस्तिनापुर के नरेश जयकुमार एंव उनकी रानी सुलोचना के शील से प्रभावित होकर उन्हें अपने कथा ग्रन्थ का आधार बनाकर "जयकुमार सुलोचनाकथा" ग्रन्थ की रचना की। 22 वें तीर्थकर नेमिनाथ एंव श्रीकृष्ण के समकालीन राजा बंराग के धार्मिक जीवन से प्रभावित होकर जयसिंह नन्दी ने “बरागचरित" लिखा। जैनाचार्य का मुख्य उद्देश्य धर्मअर्थ काममोक्ष चतुर्वर्ग समन्वित मानव के पुरुषार्थ को जनसाधारण के लिए उपयोगी बताना है 2 | बंराग को जैन मुनि द्वारा जीव एंव कर्म सम्बन्ध, सुख दुःख का कारण, सम्यकत्व मिथ्यात्व, महाव्रत गुप्ति, समिति आदि जैन धर्म के सिद्धान्तों पर दिये गये उपदेशों का निरुपण किया गया है। उज्जैन नरेश समरादित्य एंव उन्हें अग्नि में भस्म करने में तत्पर गिरिसेन चाण्डाल इन दो आत्माओं के नौ मानव भवों के वर्णन से कर्म सिद्धान्त का प्ररुपण कर हरिभद्रसूरि ने वि०सं०७५७ में “समराइच्च कहा” की रचना की। मणिपति नृप द्वारा राज्यकार्य छोड़ देने एंव मुनि जीवन धारण करने के पश्चात् कुंचिक सेठ व उनके बीच होने वाले संवाद द्वारा जैन धर्म के आचार एंव सिद्धान्तों को अत्याधिक उच्च बताया गया है। मणिपति राजा के चरित्र पर प्राकृत व संस्कृत में अनेक रचनाएं लिखी गयी। . चालुक्य वंशी राजा जयसिंह के राज्यकाल में वादिराज ने यशोधर चरित एंव पार्श्वनाथ चरित की रचना की। इससे जयसिंह के शासनकाल एंव धार्मिक कार्यो की जानकारी होती है। परमार राजवंश द्वारा जैनधर्म को प्रश्रय दिया गया था। राजा भोज के पिता सिन्धुराज के महामात्य जैनाचार्य महासेनसूरि के शिष्य थे। महासेन सूरि ने सिन्धुराज के शासन काल 665-668 ई० में "प्रद्मुन्नचरित काव्य 66 की रचना की इससे मुज्जं और सिन्धुराज द्वारा जैनधर्म में श्रद्धा रखने एंव जैनाचार्यों को प्रश्रय देने की जानकारी होती है। परमार नरेश मुज्जं एंव भोज द्वारा धनपाल कवि को भी आश्रय दिया गया उसने राजा भोज के जिनागमोक्त कथा श्रवण से उत्पन्न कुतूहल को दूर करने के लिए "तिलकमंजरी की रचना की। इसमें कोशलनरेश मेघवाहन के पुत्र हरिवाहन समरकेतु का चरित्र वर्णन है। तिलक मंजरी से धारा के परमार राजाओं की बैरिसिंह से लेकर भोज तक वंशावली प्राप्त होती है / भोज द्वारा धनपाल को "सरस्वती पद" से विभूषित किया गया था। राष्ट्रकूट राज्यवंश द्वारा भी आश्रय प्राप्त था। राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण के सामन्त चालुक्य अरिकेशरी तृतीय के राज्यकाल में (656 सन्) सोम देव सूरि ने
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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