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________________ 33 जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य का उल्लेख प्राप्त होता है। असग कवि ने शक सम्वत् 610 में संस्कृत भाषा में सर्वप्रथम “शान्तिनाथ चरित” की रचना की असग ने 12 सर्गो में एक लघु शान्तिपुराण की भी रचना की। ___16 वें तीर्थकर मल्लिनाथ पर सं० 1175 में जिनेश्वर सूरिकृत प्राकृत भाषा में “मल्लिनाहचरिय” प्राप्त होता है | ____20 वें तीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामी पर हर्षपुरीयगच्छ के श्री चन्द्रसूरि द्वारा प्राकृत में चरितकाव्य लिखा गया लेकिन समय अनिश्चित है। 22 वें तीर्थकंर नेमिनाथ पर जिनेश्वरसूरिकृत प्राकृत रचना "नेमिनाहचरिय” (स० 1175) उपलब्ध है / संस्कृत भाषा में 10 वीं शताब्दी में कवि वाग्भट प्रथम द्वारा “नेमिनिर्वाण महाकाव्य" लिखा गया। इस काव्य का प्रमुख उद्देश्य नेमिनाथ के चरित्र द्वारा अनुरक्ति से विरक्ति की ओर जाने की शिक्षा देना है इसकी विषयवस्तु भी गुणभद्र के उत्तरपुराण से ली गयी प्रतीत होती है। "चन्द्रप्रभचरित' (11 वीं शती उत्तरार्द्ध) को नेमिनिर्वाण महाकाव्य की शैली से प्रभावित होने के कारण इसका समय 10 वीं शताब्दी मान्य किया गया है लेकिन नेमिचन्द्र शास्त्री इसे चन्द्रप्रभचरित एंव धर्मशर्माभ्युदय से बाद का मानते है। 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के जीवन चरित्र पर वि०सं० 1168 में देवभद्राचार्य ने गद्य पद्य मिश्रित प्राकृत भाषा में “पासनाहचरिय' की रचना की४२ | इस ग्रंथ में पार्श्वनाथ के छः पूर्वभवों का उल्लेख प्राप्त होता है जबकि अन्य में 10 पूर्वभवों का। तीर्थकर पार्श्वनाथ के रुप में जन्म लेने एंव केवल ज्ञान प्राप्ति एंव धर्मोपदेश के साथ विभिन्न तीर्थ स्थानों में विहार करने की जानकारी होती है। संस्कृत भाषा में वादिराज ने शक सं० 647 (1025 ई) में दक्षिण के चालुक्य चक्रवर्ती राजा जयसिंह के राज्यकाल में राजधानी कट्टगेरी में रहते हुए “पार्श्वनाथ चरित' की रचना की | इसमें 12 सर्ग है एंव प्रत्येक सर्ग का नाम सर्ग में सन्निहित विषयवस्तु के आधार पर किया है। वादिराज जयसिंह के राजकवि थे इन्हें जयदेवमल्लवादी की उपाधि प्रदान की गयी थी। 24 वें तीर्थकर महाकवि के जीवन चरित्र पर गद्यपद्य मिश्रित प्राकृत भाषा में देवभद्रसूरि ने वि०सं० 1136 में "महावीरचरिय” काव्य ग्रंथ लिखा / प्रथम चार सर्गो में महावीर के पूर्वभवों एंव अन्तिम चार में उनके वर्तमान भव का वर्णन है। पूर्वभवों के उल्लेखों से चक्रवर्ती, नारायण एंव प्रतिनारायणों के बीच होने गले युद्धों एंव दिग्विजयों की जानकारी होती है। महावीर के जन्म का वर्णन करने वाले सर्ग में मंत्र तन्त्र, विद्यासाधन एंव वाममार्गीय एंव कापालिकों के क्रियाकर्मकाण्डों का वर्णन करके विरोध किया गया है। इस काव्य से जैन इतिहास से सम्बन्धित गणधरों के वर्णन, चतुर्विध संध की रचना एंव सामाजिक रीतिरिवाजों की जानकारी होती है।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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