SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन इतिहास लेखकों का उद्देश्य 31 त्रेशठशलाका-पुरुषों ने जन्म लिया। जैन साहित्य में इन राजवशों की संख्या 12 निर्दिष्ट की गयी है। जैनाचार्यो ने इन महापुरुषों के चरित्रों के निरुपण द्वारा जैनधर्म के सिद्धान्तों एंव आचारों विचारों का विशद चित्रण प्रस्तुत किया है। अरिहंत या तीर्थकर वंश जैन मान्यता के अनुसार धर्म के उच्छेद होने पर तीर्थकर जन्म लेते हैं एंव विवेक मय संयत जीवन व्यतीत कर अन्त में दीक्षा लेकर तपस्या करते हैं एंव पूर्णज्ञान होने पर मोक्ष प्राप्त करते है। जैन परम्परा एंव मान्यतानुसार ऋषभदेव एंव अरिष्टनेमि का उल्लेख वैदिक साहित्य में प्राप्त होता है | ये नाम जैन तीर्थकर के भव के अनुरुप धर्मतत्व का वैज्ञानिक रुप से प्रचार किया लेकिन धर्म निरुपण की शैली एंव भाव समान थे। जैन शास्त्रों से तीर्थकरों के शासनभेद की जानकारी होती है / अतएव जैनधर्म का प्रवाह भगवान ऋषभदेव से हुआ और बाद में वीतराग, व्रात्य, निर्ग्रन्थ एंव अर्हत् नामों से जैन धर्म प्रवाहित होता रहा। जैन धर्म में 24 तीर्थकर हुए१५ जिनका जैन इतिहास लेखकों ने विविध भाषाओं में चरित्र निरुपण किया। ऋषभदेव . ऋषभदेव ने सुषमादुषमा नामक तीसरे काल में जन्म लिया। आदि तीर्थकर आदिनाथ को वटवृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान ऋषभदेव के चरित्र पर सर्वप्रथम नवांगी टीकाकार अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानाचार्य ने सं० 1160 में प्राकृत भाषा में "आदिनाह चरियग्रन्थ 16 लिखा। भुवनतुंग-सूरि द्वारा लिखित ऋषभदेवचरिय भी प्राप्त होता है / हेमचन्द्राचार्य प्रणीत "त्रिशष्ठिशलाकापुरुष चरित” में भगवान ऋषभदेव के जन्म से पूर्व उनकी माता के चौदह स्वप्न से लेकर ऋषभदेव के जन्माभिषेक राज्याभिषेक, धर्मचक, केवलज्ञान, समवसरण, चतुर्विध संध की स्थापना, दीक्षा लेना, चतुर्दश पूर्व एंव द्वादशांगी की रचना आदि का वर्णन प्राप्त होता है। इन वर्णनों से तत्कालीन प्रथाओं एंव रीतिरिवाजों का उल्लेख किया है एंव धर्म देशना द्वारा जैन सिद्धान्तों का विवेचन किया है। दूसरे तीर्थकंर अजित नाथ, सम्भवनाथ एंव अभिनन्दन पर भी 12 वीं शताब्दी के बाद चरितकाव्य लिखे गये। पांचवे तीर्थकंर सुमतिनाथ का चरित्र चित्रण बृहदगच्छीय सोमप्रभाचार्य ने चालुक्य राजा कुमारपाल के राज्यारोहण (सं० 1166) के समय प्राकृत भाषा में "सुभईनाइचरिय"१८ ग्रन्थ में किया है। सांतवे तीर्थकर सुपार्श्वनाथ के जीवन चरित पर अनेक जैन लेखकों द्वारा प्राकृत में चरित काव्य
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy