SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन साहित्य का सन-शास्त्रीय इतिहास 57. “षट-प्राभृत” टीका पृ० 76 - षडदर्शन - सम्मुचय के टीकाकार गुणरत्न के अनुसार यापनीय संघ के मुनि नग्न रहने के साथ मोरों की पिच्छि रखते एंव नग्न मूर्तियों की पूजा करते थे। 58. कुवलयमाला श्लोक 38 जैन साहित्य एंव इतिहास पृ० 114 - इस ग्रंथ क कर्ता जिनसेन पुन्नाट संघ के आचार्य थे वे आदिपुराण के कर्ता जिनसन से भिन्न हैं। स्व०डा०पाठक, टी०एस०कुप्पास्वामी आदि ने नाम साम्य के आधार पर दोनों को एक समझ लिया था। 56. पं०चं० श्लोक 185 / 60. उ०पु०प्रस्तावना-सर्गो के अन्त में भी गुणभद्राचार्य प्रणीते लिखा गया है 61. विव्दद्रत्नमाला पृ०७४-७७। 62. आ०पु० 1/46 63. गद्यचिन्तामणि श्लोक 6 64. उ०पु०प्र० श्लोक 6 65. इस टीका की एक प्रति बम्बई के ए०प०सरस्वती भवन में (३८क) है जो वि०सं० 1652 की है। इसके कर्ता का नाम नहीं मालूम हुआ है। 66. "सिंहसमय॑पीठविभव* : मल्लिषेण प्रशस्ति जै०शि०सं० भाग-१। 67. जै०शि० सं०भाग 1. श्रवणबेलगोला की मल्लिषेण प्रशस्ति। पार्श्वनाथ - चरित श्लों 22 68. यशो० चं० 1/5 66. यशोधरचरित 3/85, सर्ग 4 - उपान्त्य पद्य में। 70. यशोधर महाराज का चरित अंकित करते समय तृतीय आश्वास में राजनीति की विशद व्याख्या की है। 71. यह शुद्ध राजनीति का ग्रंथ है। 72. अध्यात्मतरिगिंणी का नाम योगमार्ग भी है इसकी एक संस्कृत टीका झालरपाटण __के सरस्वतीभवन भंडार में है जिसके कर्ता गणधर कीर्ति है रचनाकाल वि०सं० 1186 है। 73. जैनधर्म का योगदान पृ० 171 74. हरिं हरिबलं नत्वा हरवंर्ण हरिप्रभम। हरीज्यं ब्रुवे टीका नीतिवाक्यामृतोपरि / / संस्कृत टीका सोम सोमसमाकारं सोमाभं सोमसम्भवम् / सोमदेवं मुनि नत्वा नीतिवाक्यामृतं ब्रुवे / / नीतिवाक्यामृत' 75. जै० सि०भा० भाग 2 अंक 1 - पं०के०भुजवलिशास्त्री
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy