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________________ * जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास जिस प्रकार प्राकृत में कथात्मकं साहित्य का प्रारम्भ रामकथा से होता है उसी प्रकार संस्कृत में पाया जाता है। जिनसेन ने ई० सन् 785 में हरिवंशपुराण की रचना की जबकि उत्तरभारत में इन्द्रायुध,दक्षिण में कृष्ण का पुत्र श्री बल्लभ.पूर्व में अवन्ति नृप-तथा पश्चिम में वत्सराज एंव सौरमंडल में वरिबराह राजाओं का राज्य था। ग्रंथ का मुख्य विषय हरिवंश में उत्पन्न हुए बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ का चरित्र वर्णन करना है। ग्रंथ में सभी शलाका-पुरुषों की स्तुति एंव त्रैलोक्य जीवादि द्रव्यों का भी वर्णन आया है। रविषेण का पद्मचरित संस्कृत का प्रसिद्ध ग्रंथ है। नवीं शताब्दी में जिनसेन प्रथम,जिनसेन द्वितीय, गुणभद्र, विद्यानन्दि, बप्पभट्टि, वादीभसिंह, हेमचन्द्र,प्रसिद्ध ग्रंथकार हुए जिन्होंने पुराण एंव चरितकाव्य लिखें। जिनसेन द्वितीय ने महापुराण की रचनाकर के एक नयी द्वितीय साहित्यिक विधा का सृजन किया। इस महापुराण के दो भाग हैं - एक आदिपुराण दूसरा उत्तरपुराण / आदि पुराण में 47 पर्व हैं शेष पर्व उत्तरपुराण के हैं। उत्तरपुराण की रचना जिनसेन के शिष्य गुणभद्र द्वारा की गयी।६० गुणभद्र ने अमोघवर्ष ने राज्याश्रय में आत्मानुशासन" एंव "जिनदत्तचरित्र आदि ग्रंथों का भी प्रणयन किया। इसकी रचना भर्तृहरि के "वैराग्यशतक के ढंग से बहुत प्रभावशालिनी है।६१ आदिपुराण की उत्थानिका में पूर्वगामी सिद्धसेन,श्रीदत्त,समन्तभद्र,यशोभद्र,शिवकोटि, जटाचार्य, देवनन्दिपूज्यपाद,अकंलक,श्रीपात्र केशरी,वादीभसिंह, वीरसेन,जयसेन एंव कवि परमेश्वर इन आचार्यो की स्तुति की गयी हैं।६२ आदि-पुराण में आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का चरित्र वर्णन है। शेष 23 तीर्थकरों का चरित्र निरुपण उत्तरपुराण में है। इस प्रकार इस महापुराण में सर्वप्रथम तीर्थकरों का चरित्र निरुपण विधिवत् एक साथ वर्णित पाया जाता है। महापुराण में महापुरुषों के नाम वैदिक पुराणों के अनुसार ही हैं और नाना संस्कारों की व्यवस्था पर भी उस परम्परा की छाप स्पष्ट दिखायी पड़ती है। जिनसेन ने पुराण रचना के साथ ही "पार्वाभ्युदय' नामक एक काव्य की भी रचना की। वादीभसिंह की “गद्यचिन्तामणि' बाणभट्ट की कादम्बरी की याद दिलाती है। कवि ने अपने गुरु का नाम पुष्पसेन बतलाया है जिनकी कृपा से वादीभसिंहता एंव मुनिपुंगवता प्राप्त की।६३ वादीभसिंह ने “क्षत्रचूडामणि नामक काव्य भी लिखा। नवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष के राज्याश्रय में जैन साहित्य की अधिकाधिक उन्नति हुयी। वीरसेन स्वामी के शिष्य सेनसंघ के आचार्य जिनसेन स्वामी उसके गुरु थे।४ इन्होंने वाटनगर के अधिष्ठान में 837 ई०वी० में "जयधवलाटीका” पूर्ण की। महावीराचार्य ने “गणित सार-संग्रह' की रचना अमोध के राज्याश्रय में की। यापनीय संध के आचार्य शाक्टायन पाल्यकीर्ति ने 'शाक्टायन' नामक "शब्दानुशासन" की रचना की / अमोधवर्ष ने संस्कृत में "प्रश्नोत्तरमालिका
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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