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________________ 232 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास वर्तमान में साहित्यिक साक्ष्य की अपेक्षा अभिलेखीय साक्ष्यों को अधिक विश्वसनीय एंव महत्वपूर्ण माना जाता है। आगमों में वर्णित विषयों का विकास अभिलेखीय साहित्य में भी पाया जाता हैं। जैनधर्म को जनसाधारण के साथ ही साथ राजवंशों द्वारा प्रश्रय प्राप्त था इसी कारण जैनधर्मानुयायी राजाओं द्वारा किये गये धार्मिक कृत्य, भूमिदान ग्रामदान, मन्दिर एंव मूर्तिनिर्माण, मन्दिर जीर्णोद्वार, भिक्षुजीवन अपनाने समाधिमरण करने आदि का उल्लेख अभिलेखीय साहित्य में हुआ है। तत्कालीन संघ, गण, गच्छ, बलि एंव आचार्य परम्परा का उल्लेख जैन प्रशस्ति एंव अभिलेखों में प्राप्त होता है। . जैन साहित्य से ज्ञात होता है कि निवृत्तिमार्गी जैनधर्म प्रवृत्तिमूलक उदारवादी दृष्टिकोण को अपने में समाहित किये हुए हैं। जैन धर्म में धर्म को निःश्रेयस की सिद्धि प्रदान करने वाला बतलाया गया है। त्रयरत्नों को मोक्षप्राप्ति के साधन (रुप) में माना गया है। जैनधर्म मुनिआचार एंव श्रावक आचार में विभक्त है जिनमें मुनियों के लिए पंचमहाव्रतों - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, अमैथुन के साथ ही त्रिगुप्ति एंव पंचसमितियों का पालन करना आवश्यक था। तप, ध्यान, त्याग, वैराग्य एंव शील पर विशेष बल दिया गया है। श्रावकों को पंच अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत, बारह अनुप्रेक्षाओं एंव ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करने का निर्देश दिया गया है जैनधर्म में कर्म के सिद्धान्त पर विशेष बल दिया गया है। कर्मो के अनुसार ही शुभ, अशुभ, गतियों एंव दुःख सुखों के प्राप्त होने की बात कही गयी है। दुष्कर्मो के फलों का निरुपण करके सत्कमों एंव धर्म में प्रवृत्त कराना उनका उद्देश्य था। __ जैनधर्म में पंचपरमेष्ठी मंत्र, पूजा एंव दान का अपना महत्व है। जैन भिक्षुओं के निवास स्थान, रहनसहन, आहार आदि के सम्बन्ध में निश्चित नियमों का पालन करना होता था लेकिन दुर्भिक्ष एंव अन्य कष्टों के आने पर उन्हें अपवाद मार्ग का आश्रय लेने की अनुमति प्रदान की गयी है। छठी शताब्दी ई० वी० से बारहवी शताब्दी के जैनसाहित्य में चित्रित समाज एंव संस्कृति पूर्वमध्ययुगीन सामाजिक विशेषताओं से युक्त है। जैन सामाजिक संगठन का आधार कर्म था। आश्रम व्यवस्था के अन्तर्गत आश्रमविकल्प, संविभाग एंव आश्रमवाद पर बल दिया गया है। विशेषतः मुनियों का निवास स्थान नगर से बाहर उद्यान एंव जंगलों में था सजातीय एंव एक विवाह को अधिक महत्व दिया गया था। विवाह प्रायः वयस्क होने पर किया जाता था। पर्दाप्रथा का अभाव, शिक्षा का समान अधिकार, धार्मिक क्षेत्र में समान अधिकार होना स्त्रियों की उच्च अवस्था को स्पष्ट करता है। जैन साहित्य में वर्णित राजा का स्वरुप हिन्दू परम्परा की भॉति देवी शक्ति सम्पन्न न होकर मानवीय रहा है। सामान्यतया छः शत्रुओं पर विजय, पक्षपात रहित
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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