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________________ 222 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास विवाह वैदिक पुराणों एंव स्मृतिकारों की तरह ही जिनसेन ने विवाह को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। वैवाहिक संस्कार की विधि एंव क्रियाएँ हिन्दू धर्म की भांति ही सम्पन्न की जाती थी। पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया जाता था। सिद्ध मूर्ति के सामने वर एंव कन्या पाणिग्रहण करके कुछ व्रतों को धारण करते थे | जिनसेन ने मनु का अनुकरण करते हुए अनुलोम अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता दी / हिन्दू धर्म से प्रभावित इन संस्कारों से ज्ञात होता है कि जैन इतिहास लेखकों के लिए अपने धर्म के सिद्धान्त को व्यापक रुप देने के लिए तत्कालीन परिस्थितियों से सामजस्य करना आवश्यक था इसी कारण उनकी सामाजिक अवधारणायें हिन्दूओं से प्रभावित एंव बहुत कुछ समानता लिये हैं। कभी कभी तो जैन इतिहास कारों द्वारा हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के श्लोकों गाथाओं एंव पद्यों को ज्यों की त्यों ले लिया गया है। महाभारत की यतोधर्मः तत्रः विजय” यह गाथा पद्मपुराण में मिलती है | महापुराण एंव त्रिशष्ठिशलाका पुरुष चरित में प्राप्त दार्शनिक एंव शिक्षात्मक विचार महाभारत से लिये गये हैं।६७ | रामायण के अनेक उदाहरणों को जैन पुराणकारों द्वारा उन्हीं स्थितियों में ही नहीं लिये गये बल्कि उन्हीं शब्दों में लिया गया है। विशेष रुप से कहावत, शिक्षा एंव वर्णनात्मक शैली में समानता है। आदिपुराण में वर्णित सांसारिक क्षणभंगुरता का आधार बाल्मीकि रामायण है। जिनसेन का काव्यात्मक रेखाचित्र बाल्मीकि रामायण के कलात्मक वर्णन का अनुकरण है। बाल्मीकि रामायण ने उसकों सशक्त शब्द शक्ति दी तथा कल्पना शक्ति एंव दृश्यों को स्पष्ट ढंग से वर्णन करने की शक्ति दी' ! संदर्भ ग्रन्थ 1. ऋगवेद 8/8/24, अ०वे०१६/५२, वि०पु०२/१. पु० 77, मा० पु० पु० 150 ब्रपु० 14/56-61, भा०पु० 5/3-6 / 2. म०पू०भा० / पृ 33 3. आ.पु० 1/16-23 4. वही 3/14-21 5. प०पु० 1/51 6. ह०पु० 3/165 प०च०भा०५ 3/50-55, पद्म००३/७३-८७. ह०पु० 7/125, 166 - आ०पु०३/६३. 152, त्रिश०पु०च० 1/2/160-206 . - प०च० 3/50 पद्म०च०३/७५, आ०पु० 3/226-230 / ॐ //
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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