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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सत्ता ज्ञात नहीं होती है। अन्तिम चार तीर्थकरों की ऐतिहासिकता जैन एंव जैनेतर साहित्य से भी ज्ञात होती हैं। इक्कीसवें तीर्थकर नमि की ऐतिहासिकता हिन्दू पुराण जिसमें उन्हें जनक का पूर्वज माना गया है, से स्पष्ट होती है। भारतीय अध्यात्म सम्बन्धी निष्काम कर्म एंव अनासक्ति भावना का उल्लेख नमि द्वारा किया गया है। महाभारत कालीन बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ ऐतिहासिक पुरुष हैं। इन्होंने हिंसामयी गार्हस्थ प्रवृत्ति से विरक्त होकर केवल ज्ञान प्राप्त कर श्रमण परम्परा में मान्य अहिंसा को धार्मिक वृत्ति का मूल मानकर उसे सैद्धान्तिक रुप दिया। महाभारत युद्ध का काल 1000 ई०पू० मान्य किया जाता है लेकिन इस सम्बन्ध में मतभेद है। वैदिक वागमय में वेद से पुराण तक के साहित्य में नेमि के वर्णन प्राप्त होते हैं।३१ तेइसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता जैन एंव जैनेतर साहित्य से स्पष्ट होती है।५ पार्श्वनाथ का निर्वाण जैन पुराणानुसार भगवान महावीर के निर्वाण से 250 वर्ष पूर्व तदनुसार ई०पू० 527 + 250 = 777 ई० पू० में हुआ था। ऋषभदेव की सर्वस्व त्याग रुप अकिंचन मुनिवृति,नमि की निरीहता एंव नेमिनाथ की अहिंसा को अपने चातुर्यामरुप सामयिक धर्म में व्यवस्थित किया। जैन आगम से स्पष्ट होता है कि महावीर के पूर्व के तीर्थकरों ने सामयिक संयम का उपदेश दिया था। जैन आगम बताते हैं कि अन्तिम तीर्थकर महावीर के माता पिता पार्श्व नाथ के अनुयायी थे। महावीर ने पार्श्वनाथ के चातुर्यामिक उपदेश में संशोधन एंव परिवर्द्धन कर उसे पंचयामी बनाया। धर्म का मूलाधार अहिंसा को मानते हुए अहिंसा,अमृषा,अचौर्य,अमैथुन एंव अपरिग्रह इन पॉचों को मुनियों के लिए आवश्यक बताया। जैन एंव जैनेतर साहित्य से महावीर एंव उनके जीवन आदि की विस्तृत जानकारी मिलती है। सर्वप्रथम महावीर ने मुनि एंव श्रावक धर्म की अलग अलग व्याख्याकर मुनियों और श्रावक श्राविकाओं को धर्मोपदेश दिया जिन्हें महाव्रत एवं अणुव्रत कहा गया है। महावीर ने 28 वर्ष की उम्र में सांसारिक सुख त्यागकर महाभिनिष्क्रमण किया एंव 12 वर्ष तक तप द्वारा आत्मशोधन करके ऋजुवालका नदी के तट पर कैवल्य प्राप्त किया एंव वे अर्हत् जिन् हो गये। महावीर को केवल ज्ञान होने पर देवताओं ने समवशरण की रचना की। महावीर ने यह जानकर कि यहाँ उपस्थितों में सर्वविरति के कोई योग्य नहीं है केवल एक क्षण देशना दी।४० तत्पश्चात् महावीर ने 30 वर्ष तक देश देशान्तरों में भ्रमण करके तत्कालीन लोकभाषा अर्द्धमागधी में उपदेश दिया। अन्त में पावा नगरी में निर्वाण प्राप्त किया।४२ महावीर के निर्वाण स्थान पर देवताओं द्वारा रत्नमय स्तूप की रचना करने की जानकारी होती है।४३ महावीर ने स्याद्वाद सिद्धान्त प्रतिपादित किया। स्याव्दाद सिद्धान्त जैन
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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