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________________ अभिलेख 187 श्रद्धा रखने वालों को ये धर्मोपदेश से लाभान्वित करते। दूसरी और ये श्वेताम्बरों के समान स्त्रीमुक्ति, कैवलीकवलाहार और सग्रन्थावस्था भी मानते थे। सम्भवतः ये संघ श्वेताम्बर दिगम्बर सम्प्रदाय के बीच की कड़ी थे३४७ | 3. द्राविड़ संघ इस संघ के प्राप्त लेखों से ज्ञात होता है कि कौगाडल्व वंश, शान्तरवंश एंव होय्यसल राजवंशो द्वारा इस संघ को संरक्षण प्राप्त था। होयसल वंश के प्राप्त एक लेख में इस संघ को द्रविलसंघ कोण्डकुन्दान्वय कहा गया है।४८ एंव कुछ अन्य लेखों में इसका द्रविड़गण के रुप में नन्दिसंघ इरुगंड्लान्वय या अरुगंड्लान्वय के साथ उल्लेख किया गया है३४६ | इन लेखों से ज्ञात होता है कि प्रारम्भ में इस द्रविड़ संघ ने अपना आधार मूल संघ या कुन्दकुन्दान्वय को बनाया होगा बाद में यापनीय संघ के नन्दिसंघ से अपना सम्बन्ध बढ़ाया और उसमें अन्तर्हित हो गया और उसके बाद यह अपने प्रभाव से पृथक् संघ के रुप में आ गया। लेखों से ज्ञात होता है कि इस संघ के साधु बसदि या जैन मन्दिरों में रहते थे। गुणसेन पंडित की गृहस्थ शिष्या द्वारा अपने गुरु की प्रतिमा बनवाने की जानकारी होती है३५० | होय्यसल वंश के लेखों से द्राविड़ संघ इरुगंलान्वय के गौतम से लेकर आचार्यों की परम्परा ज्ञात होती है३५१ / इस संघ के आचार्यों द्वारा समाधिमरण करने की जानकारी होती है.५२ | होय्यसल राजा नरसिंह द्वारा इस संघ के आदिनाथ एंव पार्श्वनाथ बसदि के लिए दान देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं३५३ / इस संघ के लेखों से ज्ञात होता है कि इस संघ के आचार्यों ने पद्मावती देवी की पूजा एंव प्रतिष्ठा के प्रसार में महत्वपूर्ण कार्य किये। शांतर एंव होय्यसल वंश के आदि राजाओं द्वारा पद्मावती देवी के प्रभाव से राज्य सत्ता पाने की जानकारी होती है३५४ | लेखों में इस संघ को द्रमिड, द्रविड़, द्रविण, द्रविड, द्राविड, दविल, दरविल नाम से उल्लिखित किया गया है। लेखों में प्राप्त समयोल्लेख से ज्ञात होता है कि इस संघ के सभी लेख 10 वीं शताब्दी के या बाद के हैं। 4 माथुरसंघ __जैन लेखों से माथुर संघ में छत्रसेन नाम के आचार्य की जानकारी होती है जो धर्मोपदेश से श्रोताओं को लाभान्वित करते थे५५ | इस अन्वय के महामुनि गुणभद्र द्वारा लेख लिखने की जानकारी होती है जिससे साभर के चौहान राजाओं की वंशावली चाहमान से सोमेश्वर तक ज्ञात होती है३५६ | लेखों से ज्ञात होता है कि माथुरसंघ नाम स्थान के आधार पर पड़ा है। मथुरा प्राचीन काल से जैनधर्म का प्रमुख स्थान रहा है मथुरा नगर या प्रान्त का जो
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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