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________________ अभिलेख . . 185 एंव आचार्यो की वंशावली ज्ञात होती है३२५ | होय्यसल वंश के प्रधानमन्त्री द्वारा इस गच्छ के आचार्यो को भूमिदान करने की जानकारी होती है२६ | लेखों से इस काणूरगण मेषपाषाणगच्छ के एक आचार्य सिंहनन्दी द्वारा गंग राजवंश की नीव रखने की जानकारी होती है३२७ / गंग नरेश इस गच्छ के आचार्यो के भक्त थे और उन्हें दानादि से सम्मानित करते थे। लेखों से कदम्ववंश द्वारा इस गच्छ के आचार्यो को भूमिदान की जानकारी होती है३२८ | पुस्तकगच्छ पार्श्वनाथ बसदि के पाषाण से सन् 1150 के लेख से काणूरगण के पुस्तकगच्छ की जानकारी होती है३२६ | बलात्कारगण लेखों में इस गण का उल्लेख सर्वप्रथम गंगपेमार्डि के 1071 ई० के लेख में प्राप्त होता है जिससे इस गण के गुणकीर्ति को ग्रामदान देने एंव इसके आचार्यो की गुरु शिष्य परम्परा की जानकारी होती है३३० | यापनीय संघ लेखों से ज्ञात होता है कि कदम्ब, चालुक्य, गंग, राष्ट्रकूट एंव रट्टवंश के राजाओं को यापनीय संघ एंव इसके साधुओं को भूमिदानादि दिये गये। कदम्ब वंश के लेखों से इस वंश द्वारा यापनीय संघ को चैत्यालय की मरम्मत, पूजा आदि के लिए भूमिदान देने की जानकारी होती है३३१ | गंगवंशीय राजा अविनीत द्वारा यापनीय संघ द्वारा अनुष्ठित जिन मन्दिर के लिए भूमि देने के उल्लेख प्राप्त हैं लेख में यावनिक शब्द प्राप्त होता है३३२ | यापनीय संघ के आचार्यो द्वारा समाधिमरण करने एंव स्मारक बनवाने की जानकारी होती है३३३ / लेखों से यापनीय संघ के गणों एंव गच्छों की जानकारी होती है। नन्दिगण नन्दिगण इस सम्प्रदाय का प्रमुख है। लेख से ज्ञात होता है कि इस गच्छ के आचार्यों का नाम विशेषतः नन्द्यन्त और कीर्त्यन्त होता था३४ | नन्दि संघ कई गणों में विभक्त था - कनकोपलसम्भूत वृक्षमूल गण३५ श्रीमूलमूलगण३३६ तथा पुन्नागवृक्षमूल गण प्रमुख थे। लेखों से इनकी आचार्य परम्पराऐं ज्ञात होती हैं। इस यापनीय संघ के नन्दिगण को मूलसंघ द्वारा अपनाया गया। लेखों में मूलसंघ के देशीय गण को
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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