SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिलेख 177 किया जाता था। उस समय पुरोहित स्वस्तिवाचन करता था। दान में दी गयी वस्तु से दानकर्ता एंव उसके परिवार का किसी प्रकार कोई सम्बन्ध नहीं रहता था। दान में दी गयी वस्तु से होने वाली आय पर अधिकार राजा का न होकर दानग्राही का होता। दानकर्ता शासक राजकर्मचारियों एंव साक्षियों के सम्मुख घोषणा करता कि ये भूभाग अथवा वस्तु अमुक गोत्र के व्यक्ति (आचार्य) अमुक आचार्य के शिष्य, ब्राह्मण या धार्मिक संस्था को दे दिया गया है। दानग्राही को सब प्रकार के कर वसूल करने का अधिकार दिया जाता है। इसके साथ ही राजा द्वारा अपने उत्तराधिकारियों के लिए इस बात के उल्लेख करने कि दान दिये गये भूभाग को वापस लेने अथवा दान में बाधा पहुंचाने पर वह नरकगामी होगा। एंव इस नियम का पालन करने पर स्वर्ग की प्राप्ति होगी, के उल्लेख प्रायः सभी दान पत्रों में प्राप्त होते हैं। ये श्लोक स्मृति ग्रन्थों से लिये गये हैं-४० / समाधिमरण मुनियों, आर्यिकाओं, श्रावक एंव श्राविकाओं एंव राजकीय परिवार के व्यक्तियों द्वारा समाधिमरण द्वारा प्राणत्याग करने की जानकारी होती है। समाधिमरण के उपलक्ष्य में स्मारक निर्माण किये जाते२४१ / समाधिमरण से सम्बन्धित लेखों में प्राप्त तिथियों से ज्ञात होता है कि सातवी, आठवी, शताब्दी में सल्लेखना का प्रचार परवर्ती शताब्दियों की अपेक्षाकृत अधिक था। लेखों में इसे सल्लेखना, समाधि, सन्यास, व्रत उपवास, तप अनशन द्वारा मरण, एंव स्वारोहण कहा गया है४२ / कभी कभी तो सल्लेखना (मरण) की सूचना केवल मुनियों एंव श्रावकों की निषद्याओं (स्मारकों) से पता चलता है२४३ / लेखों से.उन तिथियों, वारों, एंव पक्षों के उल्लेख प्राप्त होते हैं जिस दिन सल्लेखना विधि से प्राणत्याग करना शुभ माना जाता था। आचार्यो द्वारा सल्लेखना विधि से प्राणत्याग करने के उल्लेख आचार्यों की प्रशस्तियों में प्राप्त होते हैं। धार्मिक सहिष्णुता अभिलेखीय साहित्य से ज्ञात होता है कि पूर्वमध्यकालीन शासक धर्म सहिष्णु थे। छठी शताब्दी ई०वी० से पूर्व से ही जैनधर्म के साथ अन्य धर्मो के प्रचलित होने एंव राजाओं द्वारा राज्याश्रय प्रदान करने की जानकारी होती हैं। जैनाचार्यो एंव अन्य धर्मवेत्ताओं द्वारा परिस्थितियों के अनुसार अपने अपने धर्म की रक्षा के लिए समाज में अन्य धर्मो से सम्बन्धित प्रचलित सिद्धान्तों को अपनाया गया। चालुक्य वंशीय लेख से शैव, बौद्ध एंव ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित सभी देवताओं के मन्दिर होने की जानकारी होती है२४५ | जैन अभिलेख प्रायः जिनका मंगलाचरण “ऊँ नमो
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy