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________________ 174 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास करने जानकारी होती है।६७ / सम्यक् ज्ञान दर्शन एंव चारित्र इन त्रयरत्नों का मोक्ष प्राप्ति हेतु पालन अत्यावश्यक था | मुनियों द्वारा द्वादशागों का अध्ययन करने एंव अपने उपदेशों से मनुष्यों को धार्मिक कृत्यों के करने के लिए प्रोत्साहित करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। धर्म को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। मुनि धर्म फल के कारण ही निर्वाण प्राप्त करते थे इसके लिए मुनि समितिगुप्ति व्रत के पालन के साथ ही सन्यास व्रत को धारण करते थे / ये मुनि यति भी होते थे, ये तार्किक एंव शास्त्रों के ज्ञाता होते थे। ये इतने अधिक शक्तिशाली होते कि प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण राज्य भी दे देते थे०१ / स्त्री समुदाय से मातृवत् व्यवहार करने की जानकारी होती हैं२०२। .. मुनियों की तरह श्रावक भी जैन धर्म के सिद्धान्तों का पालन करते थे। वे संध में रहते एंव मन्दिर निर्माण, जीर्णोद्धार, दानादि धार्मिक कृत्यों को करते थे२०३ | जैन लेखों में राजाओं को भी पंचअणुव्रतों, महाव्रतों का पालन करने एंव माँस, मद्य, मधु का त्याग करना आवश्यक बतलाया गया है। लेखों में झूठ बोलना, युद्ध में भय, परदारारत, शरणार्थियों को शरण न देना, अधीनस्थों को अपरितृप्त रखना, सभी से द्रोह, योग्य को छोड़ देना, ये सात नरक के द्वार बताये गये हैं। अतएव राजाओं को इनसे बचने का निर्देश दिया गया है२०४ / लेखों से मृत्यु के समय पंच परमेष्ठी को पंचनमस्कार मंत्र पूर्वक स्मरण के उल्लेख मिलते है२०५ | मन्दिर निर्माण लेखों से राजवंशों के साथ ही साथ जनसाधारण के जैनधर्म से प्रभावित होने की जानकारी होती हैं। पूर्वमध्ययुग मन्दिर निर्माण का प्रमुख काल था, स्थान-स्थान पर मन्दिरों का निर्माण होने लगा२०६ | जनसाधारण२०७ एंव विभिन्न राजवंशों - गंग२०८, चालुक्य०६ रट्ट१०, होय्यसल११, कदम्ब१२ राजवंश द्वारा जिन मन्दिर निर्माण कराने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। मन्दिर निर्माण हेतु करों से मुक्त करके भूमि एंव ग्रामदान किये जाते थे२१३ / लेखों से मन्दिर वास्तुकला की जानकारी नहीं होती किन्तु कुछ मन्दिरों की चोटी रत्नों से जड़ित होने एंव गोपुर होने की जानकारी होती है।१४ / मन्दिरों में द्वार, स्तम्भ, शाला एंव मण्डप बनाये जाते थे। जैनमन्दिरों के समक्ष मानस्तम्भ या पूजार्थ स्तंभ स्थापित किये जाते थे जिन पर तीर्थकरों की एंव अन्य देवताओं की लट तु आकृतियाँ उत्कीर्ण की जाती थी२१५ | ये मन्दिर प्रायः पाषाणया ईंट के बनते थे पर कुछ लेखों में लकड़ी के मन्दिर बनने की जानकारी होती हैं१६ | मूर्ति निर्माण मूर्ति लेखों एंव मूर्ति निर्माण के हेतु दान देने के उल्लेखों से मन्दिरों में
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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