SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 170 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास राजा लेखो से ज्ञात होता है कि साम्राज्य के विभिन्न भागों में विभाजित होने एंव सामन्त राज्य स्थापित होने पर भी साम्राज्य की सम्पूर्ण सत्ता का स्त्रोत राजा होता था उसका पद वंशपरम्परागत होता था। प्रायः ये क्षत्रिय वंश के होते थे।३५ / राजाओं की अपनी अपनी राजधानी होती थी१३६ | प्रजा की आन्तरिक अशान्ति एंव बाहरी शत्रुओं से रक्षा करना राजा का प्रमुख कर्तव्य था। लेखों में राजा को दुष्टनिग्रह एंव शिष्टप्रतिपालक कहा गया है१३७ | धर्म पर अत्यधिक बल दिये जाने के कारण जैन लेखों में पंच अणुव्रतों का पालन, मधु, मॉस, मद्य का त्याग धार्मिक वृत्ति को अपनाना, याचकों को पर्याप्त दान देना, दुष्टों से दूर रहना, युद्ध भूमि से न भागना आदि राजा के आवश्यक कर्तव्य बतलाये गये हैं।३८ | राजा महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक, आदि बड़ी-बड़ी उपाधियों को धारण करते थे एंव राजकीय पदाधिकारियों से घिरे रहते थे। उत्तराधिकार एंव युवराज ___ लेखों में राजकीय पदाधिकारियों में युवराज का नाम प्राप्त होता है। अपने पिता के शासन कार्य में योग देते हुए राजकीय विषयों, शस्त्र एंव शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर लेते थे। राजा द्वारा अपने पुत्रों को प्रायः प्रान्तीय शासक नियुक्त किया जाता था। युवराज अनेक उपाधियों को धारण करते थे। महासामन्त युवराज के अधीनस्थ होकर प्रदेशों पर शासन करते४० / राजा द्वारा दिये गये दानों पर युवराज पुनः सम्मति देते थे। लेखों में वृद्धावस्था आने पर राजाओं द्वारा पुत्र को राज्यभार दे देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। प्रायः ज्येष्ठ पुत्र को ही राजा युवराज निश्चित करता था 42 / परन्तु कभी कभी योग्यता के आधार पर छोटे पुत्र को उत्तराधिकार प्राप्त हो जाता था। लेखों में कभी कभी पट्टराज्ञी के भाई द्वारा भी राज्याधिकार प्राप्त करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं जो उस पट्टराज्ञी की महत्वपूर्ण स्थिति पर प्रकाश डालते हैं१४३ | पुत्र के अभाव में पौत्र एंव तत्पश्चात राजा द्वारा राज्यप्राप्ति के उल्लेख प्राप्त होते हैं१४४ | चालुक्य लेख से राजा की मृत्यु के पश्चात् राज्यप्राप्ति के लिए परस्पर युद्ध होने के उल्लेख मिलते है१४५ | राष्ट्रकूट लेख से उत्तराधिकार के समय एवं राजाओं के राज्यकाल में सामन्तों द्वारा विद्रोह करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।४६ | __राज्य प्राप्त करने से पूर्व युवराज का राज्याभिषेक एंव राजतिलक करना आवश्यक था१४७ / इस अवसर पर राजा द्वारा पर्याप्त दान दिया जाता था'४८ / लेखों में प्राप्त पट्टराज्ञी, पट्टमहिषी शब्द मुख्य रानी की और संकेत करते हैं। स्त्रियों द्वारा भी राज्यकार्य करने की जानकारी होती है /
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy