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________________ 168 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास छोटे-छोटे राज्यों का अभ्युदय हुआ। लेखों से उत्तर भारत में चन्देल,कल्चुरी, परमार, चालुक्य, चाहमान एंव दक्षिण भारत में गंग, राष्ट्रकूट होययसल, कदम्ब, पांडय, पल्लव एंव चोल राजाओं द्वारा अपने अपने राज्य स्थापित करने की जानकारी होती है। कोई भी राजवंश सर्वाधिक शक्तिशाली न था फिर भी प्रायः सभी राजाओं द्वारा परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर आदि उपाधियों को धारण किया गया / प्रायः सभी लेखों में “सामन्त शब्द आता है जिससे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक शासक के अपने सामन्त होते थे जो राज के अधीनस्थ होते थे। सामन्तों को महासामन्त भी कहा गया है राजाओं के समान सामन्त भी अधीश्वर आदि उपाधियों को धारण करते थे।०२। लेखों में प्राप्त सामन्तों की वंशावली सामन्त पद के वंशानुगत होने को स्पष्ट करती है।०३ | राजा को दानादि करते समय सामन्तों की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक था० / सामन्तों द्वारा राज्य की भूमि एंव ग्राम दान देने के उल्लेख प्राप्त होते है | लेखों में नोलम्ब०६, सिन्दिकुल०७, रट्टकुल०८, शिलाहार, काकतीय१०, सान्तर१११ एंव कौंगात्व'१२ आदि सामन्त राजवंशों के उल्लेख प्राप्त होते हैं जिन्होंने राष्ट्रकूट, गंग, चालुक्य एंव होय्यसल राज्यों में सामन्तों के रुप में शासन कार्य किया। चालुक्य लेखों से सामन्त राजाओं द्वारा विजित राजा को विविध प्रकार की भेंट देने की जानकारी होती है। आवश्यकता पड़ने पर ये राजा को सैनिक सहायता करने के साथ ही युद्ध भी करते थे / अभिलेखों से राज्यों के बीच संघर्ष होने की जानकारी होती है - जिसमें एक राजा दूसरे राजा की सहायता भी करते थे१४ | राष्ट्रकूट एंव चोल राजा के बीच हुए संघर्ष में गंगबुतुग द्वारा सहायता करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं।५ | सार्वभौमिक राज्य स्थापित करने के लिए राजाओं द्वारा दिग्विजय करने की जानकारी होती है१६ | युद्ध अभियानकम में स्थान स्थान पर विजय स्कन्धावार बनाने की जानकारी होती है११७ | राजाओं द्वारा की गयी विजयों के उल्लेखों से तत्कालीन राज्यों की स्थिति एंव विभिन्न राजवंशों की समकालीनता ज्ञात होती है११८ | साम्राज्य विभाजन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य अनेक भुक्तियों (प्रान्तों) में विभाजित था। लेखों में मण्डल शब्द का प्रयोग भी प्राप्त होता है। प्रत्येक मंडल में अनेक बड़े-बड़े विषय (जिले) होते थे। विषय अनेक पुरों (नगरों) में तथा पुर अनेक ग्रामों में विभाजित थे। लेखों से देश का ग्राम नगर, खेड, कर्वण, मडम्ब, द्रोणमुख, पुर, पट्टन, राजधानी इन नौ विभागों में विभाजित होने की जानकारी होती है।१६ | प्रान्तीय शासन प्रबन्ध के लिए प्रान्तपति राजा की ओर से नियुक्त किया जाता था यह प्रायः राजकुमार, राजवंशीय अथवा कोई बड़ा सामन्त होता था।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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