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________________ 146 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास है इसका कारण इसका स्याद्वाद अथवा अनेकान्त प्रणाली है। इन विविध रुपों को समझने एंव समझाने की पद्धतियों को ही जैनदर्शन में निक्षेप कहा गया है। चरितकाव्यों में निक्षेप चार प्रकार के बतलाये गये हैं 1 नाम निक्षेप, 2 स्थापना निक्षेप, 3 भाव निक्षेप एंव 4 द्रव्य निक्षेप। इस तरह वस्तु विवेचन में द्रव्य, क्षेत्र, काल एंव भाव के सम्बन्ध में ध्यान रखने, वस्तु को उसकी सत्ता, संख्या, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव एंव अल्प बहुत्व के अनुसार समझने एंव एकान्त दृष्टि से बचाने के लिए चार निक्षेपों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है३८० / स्याद्वाद एंव अनेकान्त वाद जैन दर्शन में द्रव्य को अनन्त गुणात्मक एंव अनन्त पर्यायात्मक बतलाया गया है। इन द्रव्य या वस्तुओं में अनेक गुण धर्मो की स्वीकृति अनेकान्त हैं एंव उसपका विवेचन स्याद्वाद पद्धति से किया जाता है। यह अनेकान्त अनन्तधर्मात्मक वस्तु के प्रति व्यक्ति का ज्ञानात्मक दृष्टिकोण है। चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि व्यक्ति अपनी अपनी दृष्टि से वस्तु के स्वरुप का प्रतिपादन करता है। प्रत्येक वस्तु का भिन्न भिन्न दृष्टियों से विचार करना, भावना बनाना, मतस्थिर करना ही अनेकान्त है। अनेकान्त वाद के अन्तर्गत जीव को सभी मतों के प्रति विधेयात्मक दृष्टिकोण एंव समन्वयभाव को अपनाना अत्यन्त आवश्यक है८१ | जब यह अनेकान्त वाणी, भाषा एंव अभिव्यक्ति का रुप धारण करता है तब यही स्याद्वाद कहलाता है। सम्भावनात्मक विचारों के अनुसार स्याद्वाद की सात प्रमाण भंगिमाँ मानी गयी हैं - स्याद्अस्ति, स्यादनास्ति, स्याद्अस्ति नास्ति, स्याद्अवक्तव्यम्, स्याद्अस्तिअवकतव्यम्, स्याद्नास्तिअवकतव्यम् और स्याद्अस्तिनास्तिअवक्तव्यम् / इस तरह द्रव्य के अनेक गुणों एंव धर्मो की सत्ता को स्वीकार करना अनेकान्त एंव उसका प्रतिपादन स्याद्वाद है८२ | संदर्भ ग्रन्थ द्विषो जगद्विलयमयान्यपातयत न्यषेवत स्मरणपि सन्ततीच्छया। गृहीतवान् करमपमित्ययाचितुं स्वजन्म यः समगभयत्परार्थताम् / / द्वि०म० 2/10 त्रिश०पु०च० पर्व 1/3/8 य०च०, पू०ख० 2/30 के बाद गद्य 1 बं०चं० 2196 च०च०४/३६.४० ध०श० 18/30-34 * ॐ ॐ
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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