SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 138 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सदाचारी बनाने एंव मोक्ष प्राप्ति का महत्पपूर्ण साधन है२६६ / इस तरह सम्यक्त्रय को विशेष महत्व दिया गया है२९७ // सम्यकत्व मिथ्यात्व सम्यकत्व द्वारा मोक्ष प्राप्ति के साथ ही मिथ्यात्व द्वारा जीवों को कर्मवन्धनों में वद्ध कर लेने की जानकारी होती है | चरितकाव्यों से मिथ्यात्व के विपरीत स्वभाव आदि पॉच लक्षणों एंव सम्यकत्व के चार लक्षणों के उल्लेख प्राप्त होते हैं२६६ | मिथ्यात्व के नष्ट होने पर ही अष्टांग सम्यकत्व प्राप्ति सम्भव है जिससे संसार का उत्कर्ष होता है३०० / औपशमिक, क्षायिक, सास्वादन, क्षायोपशमिक, एंव वेदक ये सम्यकत्व के पॉच भेद हैं३०१ / कर्म सिद्धान्त चरितकाव्यों से मानव, तिर्यच, स्वर्ग, नरक आदि चतुर्गतियाँ एंव उनमें प्राप्त होने वाले सुख दुःख कर्मानुसार प्राप्त होने की जानकारी होती है। यही जैनधर्म का कर्म सिद्धान्त है३०२ | जैन धर्म एंव दर्शन के अन्तर्गत कर्म को एक वस्तुभूत पदार्थ माना गया है जो कि जीव की क्रिया से आसक्त होकर उसमें मिल जाता है इसी कारण जैन दर्शन कर्म एंव जीव का सम्बन्ध अनादि मानता है०३ | जीवों द्वारा सत्कर्मो को दुष्कर्मो से नष्ट करके दुःख प्राप्त करने एंव सत्कर्मो से दुष्कर्मो को नष्ट करके सुख प्राप्त करने के उल्लेख मिलते हैं। प्रायः रागी मनुष्य कर्मो से बंधता एंव वीतरागी उन्मुक्त होता है३०५ | कर्म के प्रकार कर्म की आठ मूल प्रकृति होने के कारण कर्मो के आठ प्रकार एंव उनके उत्तरभेदों की जानकारी होती है३०६ / “दर्शनावरण कर्म आत्मा के दर्शननामक चैतन्य गुण को आत्मसात करता है३०७ इस कर्म की नौ उत्तर प्रकृतियों का उल्लेख बंराग चरित में प्राप्त होता है | "ज्ञानावरणी कर्म आत्मा के ज्ञान गुण को आत्मसात कर लेता है जिससे संसारावस्था में ज्ञानगुण पूर्णरुपेण विकसित नहीं हो पाता है। इस कर्म की पाँच उत्तर प्रकृतियों की जानकारी होती है जिनकी प्राप्ति ज्ञानावरणीय कर्मों के समाप्त कर लेने पर ही सम्भव है।०६। चतुर्गतियों में सुख दुःख की प्राप्ति कराने वाले कर्मो को वेदनीय कर्म कहा गया है। साता एंव असाता भेद से इस कर्म की दो मूल प्रकृति है३१० / “मोहनीय कर्म" अपरिग्रह वृत्ति में अविवेक आदि विरोधी गुणों को उत्पन्न करते हैं। चरित्र एंव
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy