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________________ 134 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास एषणा समिति भिक्षा द्वारा शुद्ध निरामिष आहार का निर्लोभ भाव से ग्रहण करने को निर्देशित किया गया है। आदान निक्षेप समिति ज्ञान एंव चारित्र की रक्षा के लिए आवश्यक वस्तुएँ यथा - ज्ञानार्जन के लिए शास्त्र, हिंसा से रक्षा के लिए पिच्छिका, शौच निमित्त कमंडल, आदि रखने की अनुमति प्राप्त होने की जानकारी होती है। प्रतिस्थापन समिति ___ सब प्राणियों के हित को ध्यान में रखते हुए जीवन जन्तु रहित एकान्त एंव सूखे स्थान पर मलमूत्रादि त्याग करना मुनि की प्रतिस्थापना समिति कहलाती है। चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि पंच समितियाँ कर्मास्त्रव को रोककर निवृत्ति की ओर ले जाती है२४५ | गुप्ति ___ मन वचन एंव काय की कियाऐं ही कर्मवन्ध को रोकती एंव बंधे हुए कर्मों की निर्जरा करती है। जिससे धार्मिक क्रियाएँ सम्भव होने की जानकारी होती है४६ | * त्रिगुप्ति आचरण युक्त मुनियों का जीवन सफल माना गया है / (मनो) - मनोगुप्ति ध्यान को - मन को बुरे संकल्पों एंव विचारों में प्रवृत्त न होने देने को “मनोगुप्ति कहते हैं। वचनगुप्ति मौन रहने को, आवश्यकता होने पर बोलने, जिससे किसी दूसरे को दुःख न हो, “वचनगुप्ति” कहते हैं। कायगुप्ति __शरीर को स्थिर रखना, आवश्यकता होने पर हिलने चलने की प्रवृत्ति करना जिससे किसी को कष्ट न हो इसी का नाम कायगुप्ति है। - अमितकीर्ति मुनि द्वारा त्रिपुष्ठ को सिंह भव में त्रिगुप्तियों का पालन करने के उपदेश देने की जानकारी होती है२४८ |
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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