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________________ 132 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास के लिए अनुमति प्राप्त है। ___ जल स्नान करके, सर्वज्ञ वीतराग अर्हत पूजा, गुरु उपासना, आगम एंव शास्त्रों का अध्ययन, संयम, तप एंव ध्यान ये छ: गृहस्थों के आवश्यक कर्तव्य बतलाये गये हैं२३१ / सल्लेखना ___ चरितकाव्यों में शान्तिपूर्वक धार्मिक रीति से प्राणत्याग करना श्रेष्ठ बतलाया गया है२३२ | कनकध्वज राजा द्वारा सल्लेखना विधि से प्राण त्याग कर स्वर्ग प्राप्त करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं३३ | 'चरितकाव्यों से मरन्नासन अवस्था में पंचपरमेष्ठी मन्त्रोपदेश करने की जानकारी होती है२३४ | त्रिशष्ठिशलाका पुरुष चरित से सल्लेखना दो तरह की बतलायी गयी है२३५ - साधुओं का सब तरह के उन्मादों एंव महारोगों के कारणों का नाश करना, “द्रव्य सल्लेखना एंव राग, द्वेष, मोह एंव सभी कषाय रुपी स्वाभाविक शत्रुओं का विच्छेद करना" भाव सल्लेखना है। मुनि धर्म भिक्षु परिग्रहवृत्ति का पूर्णरुपेण परित्यागकर नग्नवृत्ति धारण करके अहिंसादि पांच महाव्रतों एंव उनकी 25 भावनाओं का सावधानी से पालन करते हैं३६ | बंरागचरित से राजकुमार बंराग द्वारा जिन दीक्षा ग्रहण कर लेने पर पंच महाव्रतों को ग्रहण करने की जानकारी होती है२३७ / अहिंसा महाव्रत अहिंसा महाव्रत के अन्दर मनसा, वाचा, कर्मणा, सूक्ष्म से सूक्ष्म एकन्द्रिय जीव से लेकर किसी भी जीव की हिंसा न करने की जानकारी होती है। अपने मन के विचारों, वचन प्रयोगों, गमनागमन, वस्तुओं को उठाने रखने एंव भोजनपान की कियाओं में जागरुक रहना अहिंसा व्रत की इन पांच भावनाओं की जानकारी बंरागचरित से होती है२३८ / सत्यमहाव्रत३६ ___ श्रावक धर्म के अन्तर्गत इस व्रत का सम्बन्ध जहाँ मूल भावना से सम्बन्धित है वहाँ मुनि धर्म के अन्तर्गत द्रव्य क्रिया एंव भाव क्रिया दोनों में ही सत्यव्रत का पालन आवश्यक है। कोध, लोभ, भय, हंसी, भाषण में औचित्य रखना ये सत्यमहाव्रत की पांच भावनाएं हैं।
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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