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________________ चरितकाव्य 123 के उल्लेख के साथ ही देवताओं द्वारा राजाओं को दृष्टि, वाणी, बाहु, मन्त्रयुद्ध आदि करने के निर्देश देने की जानकारी होती है१२२ / भरत चक्रवर्ती एंव महाबाहु बाहुबलि के बीच दृष्टियुद्ध, वाणीयुद्ध, बाहुयुद्ध, भुजदण्ड युद्ध एंव दण्डयुद्ध होने की जानकारी होती है१२३ / शस्त्र युद्ध की अपेक्षा मन्त्रयुद्ध महत्वपूर्ण माना जाता था | दिग्विजय - क्षत्रियों के लिए शस्त्र धारण करना उनका कर्तव्य था। चरितकाव्यों से चक्रवर्ती राजाओं द्वारा दिग्विजय करने की जानकारी होती है। प्रयाण करने से पूर्व मंगलस्नान किया करने एंव दिग्विजय अभियान में चकरत्न, दण्डरत्न, सेनापति, रत्न, अश्वरत्न, पुरोहितरत्न, गृहपतिरत्न, वर्द्धकिरत्न, चर्मरत्न छत्ररत्न ये सब साथ साथ चलते थे।२५ | चकरत्न सबसे आगे चलता था, भरत चक्रवर्ती द्वारा चकरत्न के पीछे प्रतिदिन एक योजन प्रमाण चलने के उल्लेख मिलते हैं१२६ | चरितकाव्यों से चक्रवर्ती का दिग्विजय कम पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर दिशा आदि कमों से होती थी। विजित राजा विविध प्रकार की भेंटे लेकर चक्रवर्ती के समीप उपस्थित होकर उनकी अधीनता स्वीकार करके प्रसन्न करते थे२८ | सामाजिक चरितकाव्यों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति ज्ञात होती है१२६ / विभिन्न जातियों एंव वर्णो के प्राप्त उल्लेखों से समाज में चार्तु-वर्ण व्यवस्था होने की जानकारी होती है।३० / वर्णव्यवस्था जन्मजात न होकर कर्म पर आधारित थी३१ | चरित काव्यों से ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों की उत्पत्ति चक्रवर्ती भरत द्वारा की गयी। ये स्वाध्याय में लीन रहकर अपूर्व ज्ञान धारण करने में तत्पर रहते थे।३२ / भरत चक्रवर्ती द्वारा अर्हतों की स्तुति एंव श्रावकों की समाचारी से पवित्र चार वेदों की रचना ब्राह्मणों के स्वाध्याय के लिए करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ब्राह्मणों का चिन्ह यज्ञोपवीतमान्य था जो तत्कालीन समाज में कांकिणीरत्न, स्वर्ण, चाँदी, रेशम के धागों से निर्मित होता था। ये ब्राह्मण वर्ण कर्म पर आधारित था३४ | अपने गुण एंव कर्मो के कारण चाण्डाल के ब्राह्मण होने के उल्लेख मिलते हैं.३५ / ब्राह्मण कुल को उच्च कुल माना जाता था३६ / ब्राह्मण सम्पूर्ण वेदों के ज्ञाता एंव शास्त्र पारंगत होते थे।३७ / चरितकाव्यों से ज्ञात होता है कि ब्राह्मण स्वयं को एंव दूसरों को संसार से मुक्ति दिलाने के कारण साधु कहे जाते थे१३ / ब्राह्मण जाति एंव उसके द्वारा सम्पादित होने वाले यज्ञों के उल्लेखों से जातिगत पेशों की जानकारी होती है।३६ | क्षत्रिय वर्ण अन्य वणों का संरक्षक होता था शस्त्र धारण करना उनका
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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