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________________ 116 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास सेना एंव कोश से मित्र राजाओं के देश को वृद्धिगत करने वाले गुण, मुनि, जैन ब्राह्मणों का सत्कार करने, धर्म अर्थ काम मोक्ष शास्त्रों का ज्ञान होना, याचकों की इच्छाएं पूर्ण करने, त्रिवेद - (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद अथवा तर्क व्याकरण व सिद्धान्त) को जानना, पुरुषार्थो की प्राप्ति में संलग्नता, आन्वीक्षिकी, त्रयी,(वर्णाश्रमों के कर्तव्य को बताने वाली विद्या) वार्ता (कृषि व व्यापारादि दण्डनीति राजनीति) आदि गुणों का होना राजा के लिए आवश्यक था | चरितकाव्यों में राजा के लिए कामोत्तेजक कार्यो से दूर रहने एंव विषयासक्त होने पर मंत्रियों पर राज्यभार सोंप देने के निर्देश प्राप्त होते हैं | चरितकाव्यों से राजाओं के उदारवादी दृष्टिकोण की जानकारी होती है राजा प्रायः सभी धर्मो को आश्रय प्रदान करते थे। सभी प्रकार के कष्टों से प्रजा को मुक्ति दिलाना राजा का कर्तव्य था | प्रजारक्षण, प्रजापालन एंव प्रजारंजन आदि कर्तव्यों को पूर्ण रुपेण पालन करने पर राज्य की भूमि रत्नगर्भा एंव धनधान्य से युक्त होने की जानकारी होती है। राजा अनुशासनरहित, प्रजा पीड़क राजकर्मचारियों को दण्ड एंव प्रजा का कल्याण करने वाले राज्य कर्मचारियों को पुरस्कार, दान द्वारा सम्मानित करते थे२३ | राजा प्रजा के कल्याणार्थ नैतिक आधारों पर कर लेता था विभिन्न माध्यमों से कोश एंव सैनिक शक्ति को समृद्ध करता था। रहस्यात्मक कार्यो की जानकारी प्राप्त करना, वृद्धों की सेवा करना, शरणागतों की रक्षा, दीनदुखियों की सेवा करना आदि राज्य को सुचारु रुप से चलाने के लिए राजा के महत्वपूर्ण कर्तव्य थे। सन्तानवत् प्रजापालन, उद्यमी मंत्रियों की नियुक्ति, राजकीय सुरक्षा हेतू चतुरगिंणी सेना के प्रबन्ध द्वारा "राज्य को सुदृढ़ बनाता था२५ | उत्तराधिकार ___ चरितकाव्यों में प्राप्त वर्णनों के आधार पर ज्ञात होता है कि तत्कालीन व्यवस्था राजतन्त्रीय व्यवस्था थी जिसमें राजा का पुत्र ही राज्यपद का उत्तराधिकारी होता था | उत्तरकोशल के रत्नुर नगर के राजा महासेन द्वारा दीक्षा ग्रहण करने पर अपने पुत्र 15 वें तीर्थकर धर्मनाथ को राज्यभार सौंपे देने के उल्लेख प्राप्त होते हैं / प्रायः राजा पुत्रों के समर्थ होने पर राज्यभार से मुक्त हो जाते२८ | कभी कभी राजा अग्रमहिषी द्वारा उत्पन्न पुत्र के स्थान पर नवविवाहित रानी से उत्पन्न होने वाले पुत्र को राज्य देने की शपथ ग्रहण कर लेते थे और तदुपरान्त विवाह कर लेते थे / पुत्र न होने पर अनुजपुत्र राज्याधिकारी होता था | अन्य पुत्रों में भी उनकी योग्यतानुसार देश दे दिये जाते थे। युवराजों द्वारा राजकीय कार्यभार ग्रहण करने से पूर्व प्रशासनिक कार्यो का ज्ञान एंव अनुभव प्राप्त करना आवश्यक था / प्रायः राजा राजपुत्रों को शिक्षित कराने
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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