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________________ 110 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास वर्ण व्यवस्था के उल्लंधन करने वाले को निष्कासित कर दिया जाता था | वैवाहिक बंधनों को तोड़ने के अपराध में उसके अंग काट कर उसका गला चोटी से बाँध दिया जाता था। चोरों की भॉति दुराचारियों को शिरोमुंडन, तर्जन, ताडन, लिंगच्छेदन, निर्वासन और मृत्यु आदि दण्ड दिये जाते थे। इसके साथ ही मृत्तिका भक्षण, विष्टाभक्षण, मल्लों द्वारा मुक्के, सर्वस्वहरण आदि दण्ड भी दिये जाते थे। शूली देने का प्रचलन भी कथाओं से ज्ञात है। दण्ड देने वाले दण्डाधिकारी का भी उल्लेख प्राप्त होता है। राग, द्वेष एंव मोह से रहित होकर, अपराधों की वास्तविक जानकारी कर, निष्पक्ष होकर दण्ड देने की धोषणा दण्डाधिकारी का कार्य था। ग्रामीण स्तर पर पंचायते भी न्याय कार्य करती थी। ग्राम का मुखिया पंचों के साथ मिलकर अपराधियों को दण्डित करते। न्याय के लिए मनोवैज्ञानिक आधार भी अपनाने के उल्लेख मिलते हैं। रानियाँ भी राजदरबार में राजा के साथ न्याय कार्य करती थी। कथाओं में प्राप्त उल्लेखों से ज्ञात होता है कि मंत्री राज्य कार्य में सहयोग देते थे। राजा के विलासी होने एंव राज्य पर ध्यान न देने पर मंत्रि नये राजा की नियुक्ति करते थे। राजा की नियुक्ति के लिए हाथी को जल का घड़ा देकर छोड़ा जाता था वह जिसका अभिषेक करता उसे राजा बना दिया जाता। इस तरह मंत्री परिषद समाज का महत्वपूर्ण अंग था। संदर्भ ग्रन्थ 1. ऋग्वेद में स्तुतियों के रुप में कहानी के मूल तत्व पाये जाते हैं। अर्थवेद में इतिहास, पुराण, गाथा एंव नाराशंसी इन चार शब्दों का प्रयोग हुआ है। माधवाचार्य के पक्ष एंव प्रतिपक्ष परिग्रह को कथा कहा है। पुराणों में कथाओं के माध्यम से वेद के गूढार्थ का प्रतिपादन हुआ है। 2. हरियाणा प्रदेश का लोक साहित्य पृ० 11 3. मरुधर केशरी अभिनन्दन ग्रन्थ पृ० 202 4. जै० क० सा०अं० पृ० 72 5. आ० क० को० भा० 1 पृ० 30. पु० क० को० पु० 72, आ०क० को० भा० 2 पृ० 73 6. उ० सू० 8/1-12 7. क्षणं चित्रं क्षणं वित्तं क्षणं जीवति मानव : / यमस्य करुणा नास्ति धर्मस्य त्वरिता
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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