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________________ 84 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास त्रयरत्न सम्यक ज्ञान, चारित्र एंव दर्शन मोक्षमार्ग के साधन हैं। समन्त भद्र इन्हें दुख से छूटने एंव सुख प्राप्त करने का साधन मानते हैं११ / सम्यक् दर्शन सांसारिक मिथ्याभावों का ज्ञान होना एंव ज्ञान की सत्यता पर दृढ़ आस्था ही सम्यक् दर्शन है। जैन दर्शन में मूलतः दो तत्व हैं जीवएंव अजीव / इन दोनों का विस्तार पाँच आस्तिकाय, छ: द्रव्य, सात या नौ तत्व के रुप में पाया जाता है२१२ | सम्यक् ज्ञान तीर्थकर महावीर द्वारा उपदिष्ट ज्ञान सम्बन्धी धर्मोपदेश ही सम्यकज्ञान है२१३ | मति, श्रुति, अवधि, मनःपर्यायः एंव केवल के भेद से यह सम्यक् ज्ञान के पाँच प्रकार हैं१४। सम्यक् चरित्र अच्छा व्यवहार ही सम्यक् चरित्र है। आस्त्रव, संवर, विरति, निर्जरा, आदि सम्यक चरित्र के अंग हैं२१५ | .... 'बन्धन के कारणों को आत्मा की और से आने को आस्त्रव कहते हैं। आत्मा को दुख देने वाले कोध, मानाभिमान्, मायाकपट एंव लोभ ये चार कषाय ही कारण हैं। आस्त्रव को रोकना अर्थात् कर्मो को न आने देना संवर हैं। बंधे हुए एंव आने वाले कर्मों से छूटने के लिए जीव को जो तपश्चर्या, धार्मिक अनुष्ठानादि करने पड़ते हैं। महाव्रत गुणव्रत, शिक्षाव्रत, गुप्तियाँ, एंव समितियाँ आदि अनेक नियम इसके अन्तर्गत आते हैं२१६ | मुनिआचार एंव श्रावकाचार अवसर्पिणी काल के प्रारम्भ में भोगभूमि व्यवस्था में धर्मकी कोई सत्ता नहीं थीं। किन्तु तीर्थकर ऋषभ द्वारा कर्मभूमि की स्थापना होने पर उनके द्वारा आजीविका के साधनों का उपदेश दिया गया१७ | ऋषभ ने प्रत्येक कार्य में अहिंसामूलक व्यवहार का उपदेश देकर अहिंसा को ही धर्म बतलाया। अहिंसा अर्थात् धर्म की रक्षा के लिए सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एंव अपरिग्रह इन चार अन्य धर्मो का पालन आवश्यक बताया। इसी का एक देश से गृहस्थ पालन करते हैं और सवदेश से मुनि पालते हैं। ये ही गृहस्थ एंव मुनियों के धर्म हैं१८ / जैन परम्पराओं एंव साहित्य से ज्ञात होता है कि जैन धर्म आचार प्रधान धर्म
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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