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________________ श्रावक-वर्णनाधिकार सामायिक के दोष आगे सामायिक के बत्तीस दोषों का कथन करते हैं - (1) अनादर अर्थात निरादर पूर्वक सामायिक करना (2) प्रतिष्ठा अर्थात मान बडाई के लिये सामायिक करना (3) परपीडित अर्थात अन्य जीवों को पीडा उत्पन्न करना (4) दोलापति अर्थात झूलना (कांपना), सामायिक काल में बालक की तरह झूलते (हिलते) रहना (5) अंकुश अर्थात अंकुश की तरह वक्रता लिये सामायिक करना (6) कच्छप-परिग्रह अर्थात कछुये की भांति शरीर संकोच कर सामायिक करना (7) मत्स्योदकवर्तन अर्थात मछली की तरह नीचे ऊपर होना (8) मनोदुष्ट अर्थात मन की दुष्टता रखना (9) वेदिकाबंधअर्थात आम्नाय से बाहर (सामायिक करना) (10) भय अर्थात भयभीत हुए सामायिक करना (11) विभस्ति अर्थात ग्लानि सहित सामायिक करना (12) ऋद्धिगौरव अर्थात ऋद्धि प्राप्ति की अभिलाषा मन में रखना (13) गौरव अर्थात जाति कुल का गर्व रखना (14) स्तेन अर्थात चोर की तरह सामायिक करना (15) व्यतीत अर्थात (सामायिक का) काल बीत जाने पर सामायिक करना (16) प्रदुष्ट अर्थात अत्यन्त दुष्टता से सामायिक करना (17) तर्जित अर्थात अन्य जीवों को भय उत्पन्न करना (18) शब्दअर्थात सामायिक के समय सावध कार्यों के लिये बोलना (19) हीलनि अर्थात पर (अन्य) की निंदा करना (20) त्रिवलित अर्थात मस्तक की भौंहें चढाये सामायिक करना (21) संकुचित अर्थात मन में संकुचित हुए सामायिक करना (22) दिग्विलोकन अर्थात दसों दिशा में इधर-उधर अवलोकन करते रहना (23) आदिष्ट अर्थात देखे बिना एवं पूछे बिना उस स्थान पर सामायिक करना (24) संयम मोचन अर्थात जैसे किसी की कोई देनदारी हो तो वह जिस-तिस प्रकार देकर पूरी करता है उसीप्रकार जिस-तिस प्रकार सामायिक का काल पूरा करना (25) लब्ध अर्थात सामायिक की सामग्री, लंगोट, पीछी अथवा स्थान का साधन बैठ
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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