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________________ वंदनाधिकार कुछ दिखाई नहीं देता है / मुझे तो एक ज्ञान ही ज्ञान सूझता है / ज्ञान के भोग बिना अन्य कुछ नहीं, अत: मैं अन्य सारे कार्यों को छोडकर ज्ञान की ही आराधना करता हूँ, ज्ञान की ही सेवा करता हूँ, ज्ञान की ही अर्चना करता हूँ तथा ज्ञान ही की शरण में रहना चाहता हूँ। ___ मैं और कैसा हूँ? शुद्ध परिणति को प्राप्त हुआ हूँ, ज्ञानानुभूति से संयुक्त हूँ तथा ज्ञायक स्वभाव को लिये हुये हूँ / ज्ञानानन्द सहज रस का अभिलाषी तथा भोक्ता हूँ, ऐसा मेरा निज स्वभाव है / इसके अनुभवन का मुझे कुछ भय नहीं है, अपनी निज लक्ष्मी को भोगने वाले पुरुष को भय नहीं होता, उसी प्रकार मुझे अपने स्वभाव में गमन करने में भय नहीं है। यह बात न्याय पूर्ण ही है / अपने भाव को ग्रहण करने वाले को कोई दंड देने में समर्थ नहीं है / पर-द्रव्य का ग्रहण करने पर दाह प्राप्त होता है, इस कारण मैंने भी पर-द्रव्य का ग्रहण छोड दिया है, अत: मैं नि:शंक स्वच्छंद हुआ प्रवर्तन करता हूँ , मुझे कुछ भय नहीं है / जैसे शार्दुल सिंह को किसी जीव-जन्तु आदि बैरी (शत्रु) का भय नहीं होता, उसीप्रकार मुझे भी कर्म रूपी बैरी का भय नहीं है / ऐसा जानकर अपने इष्ट देवता को विनय पूर्वक नमस्कार करके आगे ज्ञानानन्द पूरित निर्भर-निजरसश्रावकाचार नाम के ग्रन्थ का प्रारम्भ करता हूं। इति श्री स्वरूप-अनुभूति-लक्ष्मी से आभूषित मैं, जो सम्यग्दृष्टिज्ञानी-आत्मा रूपी ज्ञायक परम पुरुष हूँ, के द्वारा रचित्त ज्ञानानन्द पूरित निर्भर-निजरस नामके शास्त्र में “वंदन' नामक अधिकार का अनुभवन पूर्वक वर्णन पूर्ण हुआ।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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