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________________ प्रकाशकीय श्री अखिल भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषद् ट्रस्ट, जयपुर के माध्यम से ब्र. रायमल्लजी कृत 'ज्ञानानन्द श्रावकाचार' का प्रकाशन करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। ब्र. रायमल्लजी आचार्यकल्प पण्डितप्रवर टोडरमलजी के समकालीन थे तथा भीलवाड़ा के निकट शाहपुरा के मूल निवासी थे। पण्डित टोडरमलजी से मिलने की इच्छा उन्हें जयपुर ले आई और फिर उन्होंने जयपुर को अपनी कर्मस्थली बनाया। ज्ञानानन्द श्रावकाचार उनकी महत्त्वपूर्ण कृति है जो मूलरूप से सरल ढुंढारी भाषा में लिखी गई है। वैसे तो इसका प्रकाशन हिन्दी में दि. जैन मुमुक्षु मण्डल भोपाल द्वारा कुछ वर्षों पूर्व किया गया था, जो अब अनुपलब्ध है। श्री धनकुमारजी जैन स्वाध्यायी विद्वान हैं। उन्होंने ढुंढारी भाषा से हिन्दी रूपान्तरण कार्य बड़े ही मनोयोग पूर्वक किया है। इस श्रमसाध्य कार्य के लिए वे बधाई के पात्र हैं। श्री अखिल भारतवर्षीय दि. जैन विद्वत्परिषद् के प्रकाशन मंत्री श्री अखिल बंसल जो समाज के वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा समन्वयवाणी के आद्य सम्पादक हैं। उन्होंने इस कृति के सम्पादन कार्य को अल्पसमय में रुचिपूर्वक किया है। इसके लिए उन्हें भी धन्यवाद। ____पुस्तक की प्रस्तावना विद्वत्परिषद् के पूर्व अध्यक्ष डॉ. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री नीमच द्वारा भोपाल से प्रकाशित कृति में प्रकाशित की गई थी, जिसका संक्षिप्तीकरण कर उसका उपयोग इस कृति में साभार किया जा रहा है। पुस्तक रत्नकरण्डश्रावकाचार के समान ही अत्यन्त उपयोगी है; अतः पाठकों को नियमित स्वाध्याय कर लाभ उठाना चाहिए / अन्त में पुस्तक के प्रकाशन में जिन महानुभावों का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहयोग प्राप्त हुआ है, उनका आभार / डॉ. सत्यप्रकाश जैन डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल महामंत्री अध्यक्ष IIT
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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