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________________ परिशिष्ठ - 2 305 जावेगा, जिससे पूरे चबूतरे पर छाया रहेगी तथा उस डेरे के चारों ओर चौबीस-चौबीस द्वार, कपडे के अथवा अभ्रक के झालरों सहित, अन्त में चबूतरे के किनारे पर बने हैं / चारों ओर कुल मिलाकर छयानवे (96) द्वार हुये / डेरे के बीच में ऊपर स्वर्ण के कलश चढाये गये हैं तथा आसपास बहुत से छोटे बडे डेरे राज्य परिवार के लिये खडे किये जायेंगे / उनसे आगे (दूर) दीवानों तथा अनेक अधिकारियों के डेरे खडे होंगे / उनसे आगे यात्रियों के लिये डेरे खडे होंगे। ___ पौष सुदी एकम से लेकर रोजाना पचास रुपये कारीगरों पर खर्च हो रहे हैं, जो माह सुदी दशमी तक लगेंगे / इसके बाद एक सौ रुपये रोजाना फाल्गुण वदी चौथ तक लगेंगे / तेरह द्वीप तेरह समुद्रों के बीच-बीच छब्बीस (26) कोट बनेंगे / राज्य से नाना प्रकार की जलुस (शोभायात्रा) सम्बन्धी सामग्री आयी है तथा आगरे में पहले जो इन्द्रध्वज पूजा हुई थी, उसका सारा सामान तथा जलुस का सामान यहां आया है तथा यहां अन्य समस्त सामग्री का निमित्त अन्य स्थानों से अधिक है अत: मनोरथ के (चाहे गये) अनुसार कार्य सिद्ध होंगे (समस्त व्यवस्था हो सकेगी)। ___यह सारी द्वीप, नदी, कुलाचल, पर्वत आदि की रचना घनरूप (थ्री डाईमेंशनल) बनी है / चांवल रोली के मंडल की भांति प्रतर रूप (टू डाईमेंशनल) नहीं बनी है / ये रचना "त्रिलोकसार” ग्रन्थ के अनुसार बनी है तथा पूजा का विधान इन्द्रध्वज पूजा का संस्कृत का तीन हजार श्लोक प्रमाण जो पाठ है उसके अनुसार होगा / चारों ओर चार बडीबडी गंधकुटियों में बडे-बडे जिनबिम्ब विराजमान होंगे, जिनकी प्रभात के समय चारों ओर से मुखिया साधर्मी युगपत पूजा करेंगे / ___ बाद में चारों ओर अधिक बुद्धि के धारक भिन्न-भिन्न मुखिया साधर्मी शास्त्र का व्याख्यान करेंगे / देश-देश से आये यात्रि एवं यहां के (श्रोता) सब मिलकर शास्त्र का उपदेश सुनेंगे / इसके बाद भोजन लेना
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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