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________________ कुदेवादि का स्वरूप 293 का तथा राहू, केतु आदि ग्रहों के निमित्त लोहा, तिल, तेल, वस्त्र आदि का तथा स्वर्ण का दान देना, मूली, शकरकंद का दान करने तथा ब्राह्मण भोजन कराना एवं कुल आदि को निमंत्रण देकर जिमाना, ककडी, खरबूजा आदि का दान करना इत्यादि नाना प्रकार के खोटे दानों का वर्णन जिनमें हो वे सब कुशास्त्र हैं / ये जानते नहीं हैं कि ये दान तीन प्रकार के पाप के कारण हैं - हिंसा, कषाय तथा विषयों की आसक्ति की तीव्रता - इन दानों से होती है, अतः ये दान महापाप के कारण हैं। इनका फल नरक निगोद आदि है। जिनमें श्रृंगार, गीत, नृत्य आदि अनेक प्रकार की कला चतुराई, हाव-भाव कटाक्ष आदि का वर्णन हो, खोटे मंत्र, यंत्र, तंत्र, औषध, वैद्यक, ज्योतिष का वर्णन हो, इत्यादि जीवों के भव-भव में दुःख के कारणों का जिनमें वर्णन हो, परमार्थ का जिनमें कथन नहीं हो, ऐसे शास्त्रों को कुशास्त्र कहते हैं। इन शास्त्रों के सुनने, श्रद्धान करने से नियम से जीव का बहुत बुरा होता है, भला तो अंश मात्र भी नहीं होता। कुशास्त्रों का ऐसा स्वरूप जानना। कुगुरु का स्वरूप आगे कुगुरु का स्वरूप कहते हैं / कुगुरु कैसे हैं ? कई तो बहुत परिग्रही हैं, कई महाक्रोध से संयुक्त हैं, कई मान से संयुक्त हैं, कोई माया अर्थात दगाबाजी से संयुक्त हैं, कोई लोभ से संयुक्त हैं / उनको पर-स्त्री से भोग करने में भी शंका नहीं है / कुगुरु और कैसे हैं ? कई तो सामग्री के साथ जीवों का होम करते हैं, कई अनछने पानी से (नदी तलाब आदि में) स्नान करने में धर्म मानते हैं कोई शरीर पर राख लगाये हैं तो कोई जटा बढाये हैं। कोई ठाढश्वरी अर्थात एक हाथ अथवा दोनों हाथ ऊंचे किये रहते हैं / कोई अधोमुख होकर अग्नि पर झूलते हैं / कोई ग्रीष्म ऋतु में बालू पर लोटते हैं / कोई झिरझिर कपड़ा पहनते हैं, कोई बाघाम्बर धारण किये हैं, कोई गले में लम्बी माला डाले रहते हैं, कोई कत्थई कपडे पहनते हैं, कोई टाट के कपडे पहनते हैं, कोई मृग छाल पहनते हैं, उनका कल्याण कैसे हो।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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