________________ त्रयोदशम अधिकार : कुदेवादि का स्वरूप कुदेव आदि का लक्षण :-आगे कुदेव आदि का लक्षण कहते हैं / जिसमें राग-द्वेष हो तथा सर्वज्ञपने का अभाव हो, उन सब को कुदेव आदि जानना / इनका कहाँ तक वर्णन करें ? दो चार दस बीस हों तो कहने में भी आवे / अत: ऐसा निश्चय करना कि सर्वज्ञ-वीतराग ही देव हैं, उनके ही वचन के अनुसार शास्त्र एवं प्रवृत्ति हो वही धर्म है तथा उन्हीं के वचन अनुसार बाह्य अभ्यन्तर परिग्रह के त्यागी, तुरन्त जन्मे बालक की तरह तिल-तुष मात्र परिग्रह से रहित वीतराग स्वरूप के धारक ही गुरु हैं / वे स्वयं भव समुद्र से तिरते है एवं औरों को तारते हैं / धर्म का सेवन करके भी लोक में बडाई नहीं चाहते हैं / ऐसे देव, गुरु, धर्म के अतिरिक्त शेष रहे उन सभी को कुदेव, कुगुरु, कुधर्म जानना / आगे और भी कहता हैं - __षट्मत का स्वरूप :- कोई तो खुदा ही को सारी सृष्टि का कर्ता मानते हैं, कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश को कर्त्ता मानते हैं - इत्यादि जानना / अब इनका परीक्षण करते हैं - तुमने (खुदा को) सम्पूर्ण तीन लोक का कर्ता कहा, यदि खुदा ही तीन लोक का कर्ता है तो उसने हिन्दुओं को क्यों पैदा किया / यदि विष्णु आदि ही तीन लोक के कर्ता हैं, तो उनने तुरक (मुसलमानों) को क्यों पैदा किया ? हिन्दु तो खुदा की निंदा करते हैं तथा तुरक विष्णु आदि की निंदा करते हैं / कोई ऐसा कहे कि पैदा करते समय उसको ज्ञान नहीं था, तब वह (कर्ता) परमेश्वर कैसे हुआ जिसे इतना भी ज्ञान नहीं था। यदि तीन लोक का कर्ता (उपरोक्त में से कोई एक) था, तो उसने किसी को दुःखी, किसी को सुखी, किसी को नारकी, किसी को तिर्यंच, किसी को मनुष्य किसी को देव इस प्रकार नाना प्रकार के जीव क्यों पैदा