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________________ नवम अधिकार : समाधिमरण का स्वरूप अब यहां अपने इष्टदेव को नमस्कार कर अंतिम समाधिमरण के स्वरूप का वर्णन करते हैं / जिसे हे भव्य ! तू सुन, पहले उसके लक्षण का वर्णन करते हैं। समाधि नि:कषाय शान्त परिणामों को कहते हैं / आगे और विशेष कथन करते हैं / सम्यग्ज्ञानी पुरुषों का तो यह सहज स्वभाव ही है कि वे समाधिमरण ही को चाहते हैं, उनको निरन्तर ऐसी ही भावना रहती है / मरण का अवसर आने पर वे इसप्रकार सावधान होते हैं, मानों सोये हुये सिंह को किसी पुरुष ने ललकारा हो। हे सिंह ! अपना पुरुषार्थ कर, तुझ पर दुश्मन की सेना आ रही है, अतः शीघ्र गुफा के बाहर निकल / जब तक बैरियों का समूह दूर है, तब तक निकलकर बैरियों की सेना को जीत ले / महन्त पुरुषों की यही रीति है। __उठते ही पहले उधर (सामने) से ऐसे वचन सुनकर शार्दुल सिंह तत्काल उठा तथा ऐसी गुंजार की (गरजा) कि मानों अषाढ के माह में इन्द्र ही गरजा है / सिंह की ऐसी गरज सुनकर बैरियों की फौज में से जो हाथी घोडे थे वे कांपने लगे तथा आगे पैर नहीं बढ़ाया / कैसा है हाथियों का समूह ? हाथियों के हृदय में सिंह का आकार घुस गया है जिससे हाथी अब धीरज नहीं रख पा रहे हैं ? कैसा धीरज नहीं रख पा रहे हैं ? क्षणक्षण में निहार कर रहे हैं, उनसे सिंह का पराक्रम सहा नहीं जा रहा है / इसीप्रकार सम्यग्ज्ञानी पुरुष रूपी शार्दुल सिंह, अष्ट कर्म रूपी बैरी जो मरण समय विषयों के विशेषपने से (सम्यग्ज्ञानी को) जीतने का उद्यम कर रहे थे, ऐसे कर्मो को आया जानकर सिंह की ही भांति सावधान होते
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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