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________________ स्वर्ग का वर्णन 205 प्रत्यक्ष मेरे कुटुम्ब परिवार श्मशान भूमि में जला रहे हैं, ऐसा नि:संदेह है इसमें संदेह नहीं। ___ वे देव-देवांगना कैसे हैं , कैसा वैभव है तथा कैसा मंगलाचरण करते हैं ? यहां जन्म कैसे (क्यों) हुआ है यह जान जाता है तथा शीघ्र ही (वहां पहले से उपस्थित देव ) उत्साह पूर्वक आते हुये ऐसे वचन कहते हैं - जय जय स्वामी ! जय जय नाथ ! जय प्रभो ! आप जयवन्त प्रवर्ते, आनन्द में वृद्धि हो। आज की घडी धन्य है कि आपका जन्म हुआ, हम इतने दिन अनाथ थे अब सनाथ हुये। अब हम आपका दर्शन पाकर कृतकृत्य हुये। हे प्रभो ! यह संपदा आपकी, राज्य आपका, यह विमान आपका, ये देवांगनाओं का समूह आपका है / ये हाथी आपका, ये चमर आपके हैं, ये सारा रत्नों के समूह का ढेर आपका है / यह सात जाति की सेना अथवा उनचास (49) जाति की सेना आपकी है / ये रत्नमयी महल आपका है, ये दस जाति के देव आपके हैं, ये मखमली बिछायत आपकी है, ये रत्नों से भरे रत्नमयी मंदिर आपके हैं तथा हे नाथ ! हे प्रभु ! हम आपके दास हैं, आप हमें आज्ञा करें वही हमें स्वीकार है। हे प्रभो ! हे नाथ ! हे स्वामिन ! हे दयामूर्ति ! हे कल्याण पुंज ! आपने पहले क्या पुण्य किया था, कैसी षटकाय जीवों की दया पाली थी अथवा कौन प्रकार ठीक से श्रद्धान किया था तथा कौन से अणुव्रत अथवा महाव्रत पाले थे ? कैसे शास्त्राभ्यास किया था अथवा एकलविहारी होकर तपश्चरण किया था। बाईस परिषह सहे (जीते) थे अथवा जिनगुणों में अनुरक्त हुये थे अथवा जिनवाणी सर पर रखी थी (जिनवचनों के अनुसार श्रद्धान-ज्ञान-आचरण किया था) इत्यादि। __जिनप्रणीत जिनधर्म के बहुत अंगों का आचरण किया था, जिसके प्रसाद से आप हमारे नाथ होकर अवतरित हुये हैं ? हे प्रभो ! यह स्वर्ग स्थान है जो आपके पुण्य का फल है / हम देव-देवांगनाये हैं तथा आपने उस मनुष्य लोक से जिनधर्म के प्रभाव से देव पर्याय प्राप्त की है, इसमें
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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