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________________ प्रस्तावना आत्म-विनय के साथ ही ब्रह्मचारी रायमलजी ने वास्तविकता को ही प्रकट किया है। जैसे भोगी को भोग के सिवाय खाना-पीना आदि कुछ अच्छा नहीं लगता, वैसे ही ज्ञान की ओर झुकने वाले को ज्ञान के, भोग के बिना सब फीका लगता है। विशेषताएँ :- लगभग एक सौ से अधिक श्रावकाचार उपलब्ध होते हैं। किन्तु उन सभी श्रावकाचारों से इसमें कई बातें विशेष मिलती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जैसे "ज्ञानानन्द श्रावकाचार" इसका नाम है, वैसे ही मधुर भावों से भरपूर है / इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं___(1) प्रायः सभी श्रावकाचार पद्य में रचे गये मिलते हैं, किन्तु यह गद्य में रची गई प्रथम रचना है / सम्पूर्ण ग्रन्थ गद्य में है। (2) पानी छानने, रसोई आदि बनाने से लेकर समाधिमरण पर्यन्त तक की सभी क्रियाओं का इसमें विधिवत् वर्णन है। श्रावकाचार की सभी मुख्य बातें इसमें पढ़ने को मिलती हैं। __(3) द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग का इतना सुन्दर सामंजस्य इसमें है कि "मोक्षमार्ग प्रकाशक' के सिवाय अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता। (4) पण्डित प्रवर टोडरमलजी, पं. दौलतरामजी कासलीवाल आदि ने जिस विषय का प्रतिपादन किया है, उसके समर्थन में स्थान-स्थान पर आचार्यों के उद्धरण दिए हैं। परन्तु ब्र. रायमल्लजी ने एक भी श्लोक या गाथा उद्धृत नहीं की। केवल नाथूराम कृत “विनय पाठ" की दो पंक्तियाँ उद्धृत की है। ___(5) जलगालन-विधि के अन्तर्गत पानी छानकर जीवानी डालने की जैसी सुन्दर, स्पष्ट, विषद विधि इस श्रावकाचार में बताई गई है। वैसी अन्य शास्त्र में विस्तार से पढ़ने में नहीं आई। (6) भाषा और भावों में बहुत ही सरलता है। (7) निश्चय और व्यवहार दोनों का सुन्दर समन्वय इसमें है। (8) जिन-मन्दिर के चौरासी आसादन दोषों का वर्णन इसमें विशेष रूप से है।
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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