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________________ विभिन्न दोषों का स्वरूप कुछ विषयों के लोलूपी क्रिया का आश्रय लेकर गाय, भैंस खरीद कर घर में आरम्भ बढाते हैं। ज्यों-ज्यों आरम्भ बढता है त्यों-त्यों हिंसा बढती है / चौपाये जीव रखने का पाप विशेष है, वह बताते हैं - वह तिर्यन्च हरित काय खाता है तथा अनछना पानी पीये बिना नहीं रहता। सूखा घास तथा छना जल मिलना कठिन होता है / कदाचित कठिनता पूर्वक इसका साधन रखा (किया) जावे तो विशेष आकुलता उत्पन्न होती है। __ आकुलता ही कषाय का बीज है तथा कषाय महापाप है / कदाचित वह भूखा प्यासा रह जावे अथवा शीत-उष्ण, डांस, मच्छर आदि के दुःख से बचाने का यत्न न हो तो उसके प्राण पीडित होते हैं / उससे (उस गाय-भैंस से) बोला तो जाता नहीं, इसे सर्व समय उसकी खबर कैसे रह पावेगी / शीत उष्णता मिटाने का उपाय कठिन है, अत: उसे सदैव वेदना ही होती है / उसका उपाय न बने तो पाप तो रखने वाले को ही लगता है तथा उसके गोबर मूत्र आदि में विशेष त्रस जीव उत्पन्न होते हैं / दूध के निमित्त सदा रात-दिन चूल्हा जला करता है, चूल्हे के निमित्त से छह काय के जीव भस्म होते हैं तथा तृष्णा बढती है / अतः ऐसे पाप का कारण होने से चौपाये जीवों को किसी प्रकार रखना (पालना) योग्य नहीं है / खल खाने का विशेष पाप है / ___ बहुत दिनों से संचित दूध गाय भैंस के पेट में रहता है तथा उसके प्रसूति होने पर उसके आंचल में से रक्त के सदृश्य निचोड कर दूध निकाला जाता है, जिसे गर्म कर जमाने पर उसका आकार अन्य ही प्रकार का हो जाता है / जिसे देख कर ग्लानि उत्पन्न होती है / ऐसे दूध का उपयोग करने वाले के राग भाव का क्या कहना ? अत: अवश्य ही इसका उपयोग नहीं करना चाहिये। बकरी के प्रसूति होने के आठ दिन बाद, गाय के दस दिन बाद तथा भैंस के पन्द्रह दिन बाद दुग्ध लेना योग्य है, इससे पहले अभक्ष्य है / आधा दूध उसके बच्चे के लिये छोडा जाना चाहिये। .
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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